ई-पुस्तकें >> संभाल कर रखना संभाल कर रखनाराजेन्द्र तिवारी
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मन को छूने वाली ग़ज़लों का संग्रह
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अकेला जंग में था ख़ुद को लश्कर कर लिया मैंने
अकेला जंग में था ख़ुद को लश्कर कर लिया मैंने।
ग़ज़ब था हौसला भी, मोर्चा सर कर लिया मैंने।।
जब आईना था लोगों को बड़ी तकलीफ़ होती थी,
इसी से दिल के आईने को पत्थर कर लिया मैंने।
किसी का क़द घटाने में लगा रहता तो क्या होता,
जो अपना क़द बढ़ाया उस से बेहतर कर लिया मैंने।
ये नासमझी कहो, फ़ितरत कहो, ग़लती कहो दिल की,
न करना था भरोसा जिस पे, अक्सर कर लिया मैंने।
बिछुड़ कर तुझसे दिल ‘राजेन्द्र’ खण्डहर सा अकेला था,
बसा कर तेरी यादों को, उसे घर कर लिया मैंने।
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