ई-पुस्तकें >> संभाल कर रखना संभाल कर रखनाराजेन्द्र तिवारी
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मन को छूने वाली ग़ज़लों का संग्रह
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अब रेत ही मिलनी है यहाँ ढूँढता है क्या
अब रेत ही मिलनी है यहाँ ढूँढता है क्या।
साहिल पे घरौंदों के निशाँ ढूँढता है क्या।।
इख़लाक़, रवादारी, वफ़ा, प्यार, मुहब्बत,
मिलते हैं गुहर अब ये कहाँ ढूँढता है क्या।
आँखों में किसी ताज की तस्वीर सजाये,
इस दौर का ये शाहजहाँ ढूँढता है क्या।
पिघलेगा, पसीजेगा, न बोलेगा वो पत्थर,
होती है बुत में जान कहाँ, ढूँढता है क्या।
रहने के लिये ढूँढ़, जगह दिल में किसी के,
तू ईंट के पत्थर के मकां, ढूँढ़ता है क्या।
ये किस के लिये भागा चला जाता है दरिया,
बेचैन सा ये आबे-रवाँ ढूँढ़ता है क्या।
‘राजेन्द्र’ कलंदर सी तबीयत है न मस्ती,
ग़ालिब का वो अंदाज़े-बयाँ, ढूँढ़ता है क्या।
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