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संभाल कर रखना
संभाल कर रखना
प्रकाशक :
भारतीय साहित्य संग्रह |
प्रकाशित वर्ष : 2016 |
पृष्ठ :123
मुखपृष्ठ :
ईपुस्तक
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पुस्तक क्रमांक : 9720
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आईएसबीएन :9781613014448 |
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258 पाठक हैं
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मन को छूने वाली ग़ज़लों का संग्रह
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दुनिया की तो हर आग से बचकर निकल गये
दुनिया की तो हर आग से बचकर निकल गये।
हम अपने ही जलाये चराग़ों से जल गये।।
मौसम ने जैसी शक्ल में चाहा था ढल गये,
यूँ तो बहुत संभल के चले थे फिसल गये।
जाने क्यों मेरे वास्ते दरिया न रुक सका,
वर्ना तो मेरी प्यास से पत्थर पिघल गये।
अपना यक़ीन है कि ये दुनिया बदल गई,
सबका ख़याल ये है कि हम ही बदल गये।
वो कह रहा है इसमें मेरा क्या कुसूर था,
शीशे का घर था हाथ के पत्थर मचल गये।
जो लोग दे रहे थे ग़मों में तसल्लियाँ,
होठों पे मुस्कराहटें आते ही जल गये।
अब तक महक रहा है मेरा पैरहन तमाम,
किसके ख़याल रूह को छूकर निकल गये।
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पुस्तक का नाम
संभाल कर रखना
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