ई-पुस्तकें >> संभाल कर रखना संभाल कर रखनाराजेन्द्र तिवारी
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मन को छूने वाली ग़ज़लों का संग्रह
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समझे न उनकी बात, इशारों के बावजूद
समझे न उनकी बात, इशारों के बावजूद।
डूबे हैं हम तो यार, किनारों के बावजूद।।
दिखती नहीं है आग, शरारों के बावजूद,
काली है कितनी रात, सितारों के बावजूद।
गुलशन को, जाने किसकी नज़र लग गई है यार,
खिलते नहीं हैं फूल, बहारों के बावजूद।
है रहबरों की भीड़, प’ मंज़िल कोई नहीं,
दर-दर भटक रहे हैं, सहारों के बावजूद।
टी.वी. को देख देख के, नस्लें बिगड़ गईं,
तहज़ीब के, तमाम इदारों के बावजूद।
चेहरों पे उनके कोई शिकन तक नहीं दिखी,
इतनी तबाहियों के नज़ारों के बावजूद।
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