ई-पुस्तकें >> संभाल कर रखना संभाल कर रखनाराजेन्द्र तिवारी
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मन को छूने वाली ग़ज़लों का संग्रह
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जैसे भटकाये हिरन को रेगज़ारों का तिलिस्म
जैसे भटकाये हिरन को रेगज़ारों का तिलिस्म।
प्यास को भटका रहा है आबशारों का तिलिस्म।।
कौन सुख देगा न जाने कौन दुख दे जायेगा,
हम समझ पाये न क़िस्मत के सितारों का तिलिस्म।
उससे बिछुड़े हो गया अर्सा न टूटा आज तक,
सिलसिला चाहत का, उसकी यादगारों का तिलिस्म।
प्यास, गागर, कश्तियाँ रुकती हैं साहिल पर मगर,
कब नदी को रोक पाया है किनारों का तिलिस्म।
भीगने के बाद भी जलता रहा कोई बदन,
जाने कैसा था वो सावन की फुहारों का तिलिस्म।
रुठ कर जैसे अचानक खिलखिला उठ्ठे कोई,
यूँ खि़ज़ाँ के बाद खुलता है बहारों का तिलिस्म।
देख कर दुनिया को बस इतना समझ पाया हूँ मैं,
ये निगाहों का है धोखा या नजा़रों का तिलिस्म।
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