लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> श्रीकान्त

श्रीकान्त

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :598
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9719
आईएसबीएन :9781613014479

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

337 पाठक हैं

शरतचन्द्र का आत्मकथात्मक उपन्यास


ऊपर सिर पर अन्धकार-प्रकाश की वह आँख-मिचौनी हो रही थी, पीछे बहुत दूर तक अविश्रान्त सतत गर्जन-तर्जन हो रहा था और सामने वही रेती का किनारा था। यह कौन स्थान है, सोच ही रहा था कि इन्द्र दौड़ता हुआ आकर खड़ा हो गया। बोला, “श्रीकांत, तुझसे एक बात कहने को लौट आया हूँ। यदि कोई मच्छ माँगने आवे तो खबरदार देना नहीं - कहे देता हूँ, खबरदार, हरगिज न देना। ठीक मेरे समान रूप बनाकर यदि कोई आवे, तो भी मत देना। कहना, तेरे मुँह पर धूल, इच्छा हो तो तू खुद ही उठा ले जा, खबरदार! हाथ से किसी को उठाकर न देना, भले ही मैं ही क्यों न होऊँ- खबरदार!”

“क्यों भाई?”

“लौटने पर बताऊँगा - किन्तु खबरदार।” यह कहते-कहते वह जैसे आया था वैसे ही दौड़ता हुआ चला गया।

इस दफे नख से शिख तक मेरे सब रोंगटे खड़े हो गये। जान पड़ा कि मानो शरीर की प्रत्येक शिरा उपशिरा में से बरफ का गला हुआ पानी बह चला है। मैं बिल्कुल बच्चा तो था नहीं, जो उसके इशारे का मतलब बिल्कुल न भाँप सकता! मेरे जीवन में ऐसी अनेक घटनाएँ घट चुकी हैं जिनकी तुलना में यह घटना समुद्र के आगे गौ के खुर के गढ़े में भरे हुए पानी के समान थी। किन्तु फिर भी इस रात्रि की यात्रा में जो भय मैंने अनुभव किया, उसे भाषा में व्यक्त नहीं किया जा सकता। मालूम होता था कि भय के मारे होश-हवास गुम करने की अन्तिम सीढ़ी पर आकर ही मैंने पैर रख दिया है। प्रतिक्षण जान पड़ता था कि कगार के उस तरफ से मानो कोई झाँक-झाँककर देख रहा है। जैसे ही मैं तिरछी दृष्टि से देखता हूँ, वैसे ही मानो वह सिर नीचा करके छिप जाता है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book