ई-पुस्तकें >> प्रेरक कहानियाँ प्रेरक कहानियाँकन्हैयालाल
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मनोरंजक और प्रेरणाप्रद बोध कथाएँ
8. मन का चोर
इंग्लैण्ड के विख्यात कवि वायरन अपने स्वास्थ्य-सुधार के लिए जेनेवा (स्विट्जरलैण्ड) में निवास कर रहे थे। एक दिन उनका बचपन का दोस्त उनसे मिलने पहुँचा, वे बहुत प्रसन्न हुए। मित्र का जी-खोलकर आतिथ्य किया। शाम को वे अपने मित्र को वहाँ का प्रमुख पार्क दिखाने भी ले गये।
जब मित्र का ध्यान पार्क की कोमल घास पर गया तो वायरन यकायक ठिठककर रुक गये और बोले-'यार! तुम बचपन में मेरी लँगड़ी टाँग के लिए चिढ़ाया करते थे और अब भी टाँग की तरफ ही देख रहे हो।'
मित्र ठहाका लगाकर हँसते हुए बोला-'मेरे प्यारे मित्र ! तब की बात छोड़िये, तब तो तुम्हारा आकर्षण केवल तुम्हारी लँगड़ी टाँग ही थी, किन्तु अब तो तुम जबर्दस्त प्रतिभा के धनी हो। अब भला ऐसा कौन उल्लू होगा, जो तुम्हारे विशाल मस्तिष्क को छोड्कर टाँगें देखने की जेहमत उठायेगा? यह तुम्हारे मन का चोर है।
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