ई-पुस्तकें >> प्रेरक कहानियाँ प्रेरक कहानियाँकन्हैयालाल
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मनोरंजक और प्रेरणाप्रद बोध कथाएँ
14. हृदय-परिवर्तन
अँगुलिमाल प्रसिद्ध लुटेरा था। कूर और अत्याचारी! जो भी सामने आ जाता, उसे ही लूट लेता। यदि सामने वाला कुछ ना-नुकर करता तो उसकी तलवार उसका गला नापने को सदैव तैयार रहती थी।
एक दिन महात्मा गौतम बुद्ध घनघोर जंगल में होकर कहीं जा रहे थे। दूर से अँगुलिमाल (वह न केवल किसी भी व्यक्ति को लूट लेता, बल्कि उसकी अंगुलियाँ काटकर अपनी माला में पहन लेता था, इसीलिए उसे अंगुलिमाल कहते थे।) ने उन्हें देख लिया। बस, फिर क्या था! वह आनन-फानन में जा पहुँचा उनके पास और बोला- 'साधुजी! जो कुछ भी तुम्हारे पास हो, सीधी तरह निकाल कर मुझे दे दो, अन्यथा तुम्हारी जान की खैर नहीं।'
अँगुलिमाल की बात सुनकर गौतम बुद्ध मुस्कराये और उसकी आखों में गहराई से झाँककर बोले - 'वत्स, मेरे पास दया और क्षमा जैसे रत्नों का भारी भण्डार है, वह तुम्हें सौंपता हूँ। झगड़े की क्या जरूरत है?'
बुद्ध का इतना कहना ही मानो जादू हो गया! अँगुलिमाल की दुर्भावना जाने कहाँ चली गई। अपनी तलवार को दूर फेंक कर वह बुद्ध के चरणों में झुक गया और बोला - 'धन्य हो, महात्मन्! आज मैं मालामाल हो गया।'
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