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प्रेरक कहानियाँ

कन्हैयालाल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :35
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9712
आईएसबीएन :9781613012802

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मनोरंजक और प्रेरणाप्रद बोध कथाएँ

 

15. ऋण


उसे सामान्य वेतन ही मिलता था। किन्तु उस वेतन के अनुसार ही उसने अपने परिवार के खर्च का बजट भी बना रखा था। दूसरी कोई फिजूल-खर्ची न तो कभी उसे लालायित कर पाती और न कभी उसमें हीनता का भाव पैदा कर पाती थी। वह सदैव प्रसन्न-चित्त रहकर अपने कार्य को पूरी कुशलता और निष्ठा के साथ करता था। वह अपने वर्तमान से पूरी तरह सन्तुष्ट था। किन्तु, उसकी पत्नी ठीक उसके विपरीत स्वभाव वाली थी। जब वह अपनी पड़ौसिनों, अपनी सहेलियों को नित्य-नये वस्त्र बदलते देखती तो ईर्ष्या और ग्लानि से उसका कलेजा मुँह को आने लगता। वह अपने पति को बार-बार कोसती - जब अन्य लोग रिश्वत लेकर मालामाल हो रहे हैं और सुखी-जीवन जी रहे हैं, तो तुम क्यों नहीं रिश्वत लेना शुरू कर देते हो?

उसे अपनी पत्नी के ताने सुनने की आदत पड चुकी थी, अत: वह उसकी बातों को गहराई से न लेता और हँसकर ही उड़ा जाता। पत्नी भी समझती थी कि चिकने घड़े पर पानी का असर होने वाला नहीं, किन्तु अपनी आदत से वह भी मजबूर थी।

किसी विशेष त्यौहार के अवसर पर पत्नी ने नई चाल चलने की सोची। वह अपने पति से प्यारपूर्वक बोली - 'क्योंजी, त्यौहार पर मिठाइयाँ तो सभी बनाते? हैं, मैं भी मिठाइयों बनाऊँगी। आखिर मैं भी गृहस्थ हूँ, मेरे भी बाल-बच्चे हैं।'

पति ने हँसकर कहा - 'भाग्यवान! तुमसे यह किसने कहा कि मिठाई मत बनाना। मैं तो काफी दिन पहले ही मिठाई बनाने के लिए आवश्यक सामग्री खरीदकर ला चुका हूँ।'

‘मुझे एक नई साड़ी भी तो चाहिए, भला साधारण-सी सूती साड़ी त्यौहार पर अच्छी लगेगी?' पत्नी बोली।

'भई, हम स्वयं सामान्य हैं, हमको सामान्य वस्तु ही शोभा देनी चाहिए। सामान्य मिठाइयाँ और सामान्य ही वस्त्र!' मुस्कराकर पति ने उत्तर दिया।

'ना, इस बार मैं आपकी बातों में नहीं आऊँगी। आप रिश्वत नहीं लेना चाहते, तो न लीजिए; मगर दो महीने का वेतन अग्रिम तो अपने विभाग से माँग सकते हो।'

'हाँ, माँग तो सकता हूँ, किन्तु यह तो कर्ज होगा। वह चुकेगा कैसे?'

' धीरे-धीरे चार-छः महीने में सब उतर जायेगा।' पत्नी ने मुस्कान बिखेरते हुए कहा।

'हुँ..... तरकीब तो सही है, परन्तु एक कठिनाई है इसमें।' पति बोला।

'क्या?' पत्नी ने उत्सुक होकर पूछा।

'जीवन का क्या भरोसा कि चार-छ: महीने चलेगा या नहीं! तुम्हें पहले परमात्मा से छ: महीने जीवन की गारण्टी लिखवाकर मुझे देनी होगी, तभी मैं वेतन अग्रिम ले सकूँगा।'

 

।। समाप्त।।

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