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पथ के दावेदार

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :537
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9710
आईएसबीएन :9781613014288

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हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।


अपूर्व बोला, “भले ही तलवलकर! केवल अपने ही देश में नहीं, संसार के जिस किसी देश में, जिस किसी युग में, जिस किसी ने अपनी जन्म-भूमि को स्वतंत्र कराने की चेष्टा की है। उसको अपना कहने की सामर्थ्य और किसी में भले ही न हो, मुझ में है। बिना अपराध के ही फिरंगी लड़कों ने जब मुझे लात मारकर प्लेटफार्म से बाहर निकाल दिया और जब मैं इसका प्रतिवाद करने के लिए गया तब अंग्रेज स्टेशन मास्टर ने मुझे केवल देशी आदमी समझकर कुत्ते की तरह ऑफिस से निकलवा दिया। उनकी लांछना, इस काले चमड़े के नीचे कम जलन पैदा नहीं करती तलवलकर! जो लोग इन जघन्य अत्याचारों से हमारी माताओं, बहनों और भाइयों का उद्धार करना चाहते हैं, उनको अपना कहकर पुकारने में जो भी कष्ट पड़े, मैं सहर्ष झेलने को तैयार हूं।”

रामदास का सुंदर गोरा चेहरा पलभर के लिए लाल हो उठा। बोला 'यह दुर्घटना तो आपने मुझे बताई नहीं।'

अपूर्व बोला, “कहना सरल नहीं है रामदास। वहां कम भारतीय नहीं थे, लेकिन मेरे अपमान का किसी पर प्रभाव नहीं पड़ा। लात की चोट से मेरी हड्डी-पसली टूटी, इसी कुशल समाचार से वह प्रसन्न हो गए। क्या बताऊं, याद आते ही दु:ख, लज्जा तथा घृणा से अपने आप मानों मिट्टी में गड़ जाता हूं।'

रामदास मौन हो रहा। लेकिन उसकी दोनों आंखें डबडबा आईं। तीन बज चुके थे, वह उठकर खड़ा हो गया।

उस दिन छुट्टी होने से पहले बड़े साहब ने कहा, “हमारे मामो के ऑफिसों में अव्यवस्था हो रही है। मांडले, शोएवी, मिक्थिला और प्रोम सभी ऑफिसों में गड़बड़ी है। मेरी इच्छा है कि तुम एक बार जाकर उन सबको देख आओ। मेरे न रहने पर सारा काम तुम्हीं को करना होगा। एक परिचय रहना चाहिए। इसलिए अगर कल-परसों...।”

अपूर्व बोला, “मैं कल ही बाहर जा सकता हूं।”

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