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पथ के दावेदार

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :537
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9710
आईएसबीएन :9781613014288

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हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।


“फिर सवेरे पुलिस में खबर देने गया। लेकिन वहां जाकर ऐसा तमाशा देखा कि इस बात की याद ही नहीं रही। आज सोच रहा हूं कि पुलिस से चोर-डाकुओं को पकड़वाना बेकार है। यही अच्छा है कि वह लोग विद्रोहियों को ही गिरफ्तार करते रहें,” यह कहते ही उसे गिरीश महापात्र की याद आ गई। हंसी रुकने पर उसने विज्ञान और चिकित्सा शास्त्र के असाधारण ज्ञाता, विलायत के डॉक्टर उपाधिधारी, राजशत्रु महापात्र के स्वास्थ्य, शिक्षा, रुचि, उनका बल-वीर्य, इन्द्रधनुषी रंग का कुर्ता, हरे रंग के मोजे, लोहे के नाल लगे पम्प शू, नींबू के तेल से सुवासित केश और सर्वोपरि परोपकार्य गांजे की चिलम का आविष्कार करने की कथा विस्तारपूर्वक सुनाते-सुनाते अपनी उत्कट हंसी का वेग किसी प्रकार और एक बार रोककर अंत में कहा, “तलवलकर महाचतुर पुलिस दल को आज की तरह मूर्ख बनते सम्भवत: किसी ने कभी नहीं देखा होगा।'

रामदास ने पूछा, “क्या ये लोग आपकी बंगाल पुलिस के हैं?”

अपूर्व ने कहा, “हां। इसके अतिरिक्त सबसे अधिक लज्जा की बात यह है कि इनके इंचार्ज मेरे पिताजी के मित्र हैं। बाबूजी ने ही एक दिन इनकी नौकरी लगवाई थी।”

“तब तो आपको किसी दिन इसका प्रायश्चित्त करना पड़ेगा।” यह कहकर रामदास सहसा अप्रतिम-सा हो गया। अपूर्व उसका चेहरा देखते ही उसका तात्पर्य समझ गया। बोला, “मैं उनको चाचा जी कहता हूं। वह हमारे आत्मीय हैं, शुभाकांक्षी हैं। लेकिन क्या इसीलिए वह मेरे लिए देश से बढ़कर हैं। बल्कि जिन्हें देश के रुपए खर्च करके, देश के आदमियों की सहायता से शिकार की तरह पकड़ने के लिए घूम रहे हैं, वह ही मेरे परम आत्मीय हैं।”

रामदास बोला, “बाबूजी, यह कहने में भी विपत्ति है।”

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