ई-पुस्तकें >> पथ के दावेदार पथ के दावेदारशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।
“सब ठीक है” कहकर अपूर्व ने पूछा, “आप कहां जाएंगे?”
“जहाज घाट पर। चलो न मेरे साथ।”
“चलिए-आपको क्या कहीं और भी जाना है?”
निमाई बाबू हंसकर बोले, “जाना हो भी सकता है। जिस महापुरुष को ले जाने के लिए घर छोड़कर इतनी दूर आना पड़ा है, उनकी इच्छा पर सब निर्भर है। उनका फोटोग्राफ है, लिखित विवरण है, लेकिन यहां की पुलिस में इतनी सामर्थ्य नहीं कि उन पर हाथ डाल सके। क्या मैं पकड़ पाऊंगा? यही सोच रहा हूं।”
अपूर्व ने उत्सुक होकर पूछा, “यह महापुरुष कौन हैं चाचा जी? जब आप आए हैं तब तो अवश्य ही कोई खूनी आसामी है?”
निमाई बाबू बोले, “यह तो नहीं बताऊंगा बेटा! क्या है और क्या नहीं है? यह बात ठीक-ठीक कोई भी नहीं जानता। इनके विरुद्ध कोई निश्चित अभियोग भी नहीं है। फिर भी इनकी निरंतर निगरानी करते रहने में इतनी बड़ी सरकार मानो निष्प्राण हो गई है।”
अपूर्व ने पूछा, “कोई आसामी है?”
निमाई बाबू बोले, “भैया पोलिटिकल तो किसी समय तुम लोगों को भी कहते थे। लेकिन वह हैं राजद्रोही! राजा के शत्रु! हां, शत्रु कहलाने के योग्य तो अवश्य हैं। बलिहारी है उनकी प्रतिभा की जिन्होंने इस लड़के का नाम सव्यसाची रखा था। बंदूक, पिस्तौल चलाने में निशाना अचूक होता है। तैरकर पद्मा नदी को पारकर जाते हैं, कोई बाधा नहीं पड़ती। इस समय यह अनुमान किया गया है कि चटगांव के रास्ते से पहाड़ पार करके इन्होंने बर्मा में पदार्पण किया है। अब मांडले से नौका द्वारा या जहाज से रंगून आने वाले हैं या रेल द्वारा उनका शुभागमन हो चुका है। कोई पक्की खबर नहीं है। लेकिन वह रवाना हो चुके हैं, यह बात निश्चित है, उनके उद्देश्य के संबंध में कोई संदेह या तर्क नहीं है। शत्रु-मित्र सभी के मन में उनका सम्मान स्थिर सिद्धांत बना हुआ है। देश में आकर किस मार्ग से वह अपना कदम बढ़ाएंगे, हम नहीं जानते। लेकिन देखो बेटा, यह सब बातें किसी को बताना मत, नहीं तो इस बुढ़ापे में सत्ताईस साल की पेंशन रह जाएगी।”
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