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पथ के दावेदार

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :537
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9710
आईएसबीएन :9781613014288

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हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।


अपूर्व उत्साहित होकर बोला, 'इतने दिनों यह कहां-क्या कर रहे थे। सव्यसाची नाम मैंने तो कभी पहले सुना नहीं।”

निमाई बाबू ने हंसते हुए कहा, “अरे भैया, इतने बड़े आदमियों का काम क्या केवल एक नाम से चलता है? सम्भवत: अर्जुन की तरह इनके भी अनेक नाम प्रचलित हैं। उन दिनों शायद सुना भी होगा, अब पहचान नहीं रहे हो। इस बीच में क्या कर रहे थे, इसकी भी पूरी जानकारी नहीं है। राजशत्रु अपने काम ढोल पीट-पीटकर करना पसंद नहीं करते। फिर भी मैं इतना जानता हूं कि वह पूना में तीन महीने की और दूसरी बार सिंगापुर में तीन वर्ष की सजा भुगत चुके हैं। यह लड़का दस-बारह भाषाओं में इस प्रकार बोल सकता है कि किसी विदेशी के लिए यह जान लेना कठिन है कि वह कहां के रहने वाले हैं? सुना है, जर्मनी के किसी नगर में डॉक्टरी पढ़ी है। फ्रांस में इंजीनियरिंग पास किया है। इंग्लैंड की नहीं जानता। लेकिन जब वहां रह चुका है तो वह अवश्य ही कुछ-न-कुछ पास किया ही होगा। इन लोगों को न तो दया है, न माया है, न धर्म-कर्म है, न कहीं घर-द्वार है। बाप रे बाप! हम लोग भी उसी देश के वासी हैं। लेकिन इस लड़के ने कहां से आकर बंगभूमि में जन्म ले लिया, यह तो सोचने पर भी नहीं जान पड़ता।”

अपूर्व कुछ न बोला। कुछ देर मौन रहकर उसने पूछा, “इनको क्या आप आज ही गिरफ्तार करेंगे?”

निमाई बाबू हंसकर बोले, “पहले पाऊं तो।”

अपूर्व ने कहा, “मान लीजिए, पा गए तो?”

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