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पथ के दावेदार

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :537
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9710
आईएसबीएन :9781613014288

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हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।


अचानक सिर के ऊपर पड़ोसियों के जाग उठने की आहट आई और प्रत्येक आहट से वह आशा करने लगा कि साहब उसके द्वार पर आकर खड़ा है। क्षमा तो वह करेगा ही, यह निश्चित है। लेकिन विगत दिन की वीभत्सता, क्या करने से सरल और सामान्य होकर विषाद का चिन्ह मिटा देगी? यही उसकी चिंता का विषय था। आशा और उद्वेग के साथ प्रतीक्षा करते-करते जब नौ बज गए तो सुना, साहब नीचे उतर रहे हैं। उनके पीछे भी दो पैरों का शब्द सुनाई दिया। थोड़ी देर बाद ही उनके द्वार का लोहे का कड़ा जोर से बज उठा। तिवारी ने आकर कहा, “बाबू, ऊपर वाला साहब कड़ा हिला रहा है।”

अपूर्व ने कहा, “दरवाजा खोलकर उनको आने दो।”

तिवारी के दरवाजा खोलते ही अपूर्व ने अत्यंत गम्भीर आवाज सुनी, “तुम्हारा साहब कहां है?”

उत्तर में तिवारी ने कहा, ठीक-ठाक सुनाई नहीं पड़ा।

स्वर से अपूर्व चौंक पड़ा, बाप रे! यह क्या सामान्य कंठ स्वर है?

सोचा, शायद साहब ने सवेरे उठते ही शराब पी ली है। इसलिए इस समय जाना उचित है या नहीं। सोचने से पहले ही फिर उधर से आदेश हुआ, “बुलाओ जल्दी।”

अपूर्व धीरे-धीरे पास जाकर खड़ा हो गया। साहब ने एक पल उसे ऊपर से नीचे तक देखकर अंग्रेजी में पूछा, “अंग्रेजी जानते हो?”

“जानता हूं।”

“मेरे सो जाने के बाद कल तुम ऊपर गए थे?”

“जी हां।”

“लाठी ठोंकी थी? अनाधिकार प्रवेश करने के लिए दरवाजा तोड़ने की कोशिश की थी?”

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