लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> पथ के दावेदार

पथ के दावेदार

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :537
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9710
आईएसबीएन :9781613014288

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

286 पाठक हैं

हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।


“मूर्ख, गंवार कहीं का,” इतना कहकर अपूर्व सोने चला गया। बिस्तर पर लेटकर पहले तिवारी के प्रति क्रोध से उसका सम्पूर्ण शरीर जलने लगा। लेकिन इस विषय में वह जितना ही सोचता था, लगता था कि शायद यह ठीक ही हुआ कि उसने स्पष्ट कहकर लौटा दिया। उसे अपने बड़े मामा की याद आ गई। उस निष्ठावान ब्राह्मण ने एक दिन भोजन करने से मना कर दिया था। करुणामयी ने पति से भाई का मन-मुटाव दूर करने के लिए एक चतुराई का सहारा लेना चाहा, लेकिन दरिद्र ब्राह्मण ने हंसकर कहा- “नहीं बहन, यह सब नहीं हो सकता। जीजा जी क्रोधी व्यक्ति हैं। इस अपमान को वह सह न पाएंगे। हो सकता है, तुम्हें भी इसमें भागीदार बनना पड़े। मेरे स्वर्गीय गुरुदेव कहा करते थे, 'मुरारी, सत्य-पालन में दु:ख है। वंचना और प्रताणना के मीठे पथ से वह कभी नहीं आता।' मैं बिना भोजन किए चला जाऊंगा। यही उचित है बहन।”

इस घटना के कारण करुणामयी ने अनेक दु:ख सहे लेकिन भाई को कभी दोष नहीं दिया। इसी बात को याद कर अपूर्व के मन में बार-बार यह बात उठने लगी, “उचित ही हुआ। तिवारी ने ठीक ही किया।”

अपूर्व की इच्छा थी कि सुबह बाजार घूम आए। लेकिन न जा सका। क्योंकि ऊपर वाला साहब कब क्षमा-याचना करने आएगा, इसका कुछ ठीक नहीं था। वह आएगा अवश्य, इसमें कोई संदेह नहीं था। आज जब उसका नशा टूटेगा तब उसकी पत्नी और बेटी, उसे किसी भी दशा में छोडेंग़ी नहीं। क्योंकि उनके द्वारा ऐसा संकेत वह कल ही पा चुका था। नींद टूटने के बाद से वह लड़की कई बार याद आई। नींद में भी उसकी भद्रता, सौजन्यता और उसका विनम्र कंठस्वर कानों में एक परिचित सुर की भांति आते-जाते रहे। अपने शराबी पिता के दुराचार के कारण उस लड़की की लज्जा की सीमा नहीं थी। मूर्ख तिवारी के रूखे व्यवहार से अपूर्व भी लज्जा का अनुभव कर रहा था।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book