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परसाई के राजनीतिक व्यंग्य

हरिशंकर परसाई

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :296
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9709
आईएसबीएन :9781613014189

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राजनीतिक विषयों पर केंद्रित निबंध कभी-कभी तत्कालीन घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए अपने पाठ की माँग करते हैं लेकिन यदि ऐसा कर पाना संभव न हो तो भी परसाई की मर्मभेदी दृष्टि उनका वॉल्तेयरीय चुटीलापन इन्हें पढ़ा ले जाने का खुद में ही पर्याप्त कारण है।


समाजवाद और धर्म


एक सज्जन ने एक पत्रिका का फोटो दिखाया। फोटो रूस के कृष्ण भक्तों का था। झाँझ-मजीरा-ढोलक के साथ कृष्ण के भजन गाते हुए रूसी लोग। उन्होंने कहा-यह क्या है। यह बीमारी रूस ने अपने घर क्यों बुला ली? यही क्या 'पेरेस्त्रोइका' और 'ग्लासनास्त' है। जिन-जिन देशों में यह बीमारी पहुँच गई है, वे खुद परेशान हैं। भारत में जहाँ इनके अड्डे हैं, वहाँ के लोग और वहाँ की सरकार परेशान है।

मैंने कहा - रूस ने अपने अपने लोगों के लिए दुनिया खोल दी है सबको देख लो सबको समझ लो। दुनिया में यह भी है। और फिर दुनिया में किसी न किसी देवता को पूजनेवाले ही अधिक हैं नास्तिक या निरपेक्ष बहुत कम है। अब रही बात उस देवता का स्मरण या उसकी प्रार्थना अपने आप कर लेना-व्यक्तिगत रूप में। या उसकी पूजा-स्तुति सार्वजनिक रूप से तामझाम के साथ करना। कुछ लोग घर में ही प्रभु-स्मरण कर लेते हैं। कुछ सार्वजनिक रूप से मंदिर या मस्जिद या गिरिजाघर में करते हैं। कुछ दोनों तरह से करते हैं। सार्वजनिक पूजा, कीर्तन, समारोह में खासा पैसा लगता है। खासा पैसा कमाया भी जाता है। कर्मकांड बहुत लोग पसंद नहीं करते पर आम तौर पर लोग कर्मकांड पसंद करते हैं। शोर है या ध्वनिलालित्य है, वाद्ययंत्रों की ध्वनि है-यह कुछ समय के लिए दूसरे जीवन में पहुँचाता तो है ही।

उन्होंने कहा - ईश्वर है या नहीं। है तो कैसा है? देव-देवी है या नहीं? इनकी पूजा कैसे की जाय, यह बात, मैं नहीं कर रहा हूँ। ये हरेकृष्णवाले मामूली कृष्ण भक्त नहीं है। इनका एक संगठन है- 'इंटरनेशनल कृष्ण कांशसनेस’ इसका आरंभ भारत में नहीं, अमेरिका में हुआ। इन लोगों के कारनामों पर बहुत लोगों को एतराज है। ये संदेहास्पद लोग हैं। कृष्ण भक्ति झूठी है। आवारा हैं मुफ्त का पैसा मिलता है। मौज करते और कृष्ण के भजन गाते फिरते हैं। देवआनंद ने इन पर एक फिल्म बनाई है। मैं पूछता हूँ कि रूस को जरूरत क्या पड़ गई।

मैने कहा - रूस उस सब को लेकर परीक्षण कर रहा है कि जो क्राँति के बाद के सालों में छूट गया था या छुड़वा दिया गया था? भारत से वेदांतियों को बुलाया जा रहा है। उनकी रूसी दर्शनशास्त्रियों तथा वैज्ञानिकों से चर्चा कराई जा रही है। रामकृष्ण मिशन और विवेकानंद आश्रम के साधुओं को आमंत्रित किया जाता है, वे वहाँ रूसी विद्वानों और वैज्ञानिकों से बातें करते हैं। तत्वचिंतन होता है। टोना-टोटका और झाड़-फूँक वाले ओझा भी बुलाते हैं, जिनसे उनकी विद्या समझते हैं।

कई सदियों तक घमंड से कूदनेवाले, फिर कूप मंडूक हो जानेवाले, फिर पिछली सदियों में गोरी जाति के सामने हीनता अनुभव करनेवाले, भारतीय मन को गर्व से नाचना चाहिए - अहा, हमारे कृष्ण दुनिया के उस देश में बंसी बजा रहे हैं, जहाँ नास्तिक रहते हैं। हो गई समाजवाद और साम्यवाद पर विजय। भारत का अध्यात्म ही आखिर जीता।

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