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परसाई के राजनीतिक व्यंग्य

हरिशंकर परसाई

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :296
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9709
आईएसबीएन :9781613014189

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राजनीतिक विषयों पर केंद्रित निबंध कभी-कभी तत्कालीन घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए अपने पाठ की माँग करते हैं लेकिन यदि ऐसा कर पाना संभव न हो तो भी परसाई की मर्मभेदी दृष्टि उनका वॉल्तेयरीय चुटीलापन इन्हें पढ़ा ले जाने का खुद में ही पर्याप्त कारण है।

गाड़ी आई, उसमें एक डिब्बे में बैठी एक युवती को पहिचान लिया। वह प्लेटफार्म पर आ गई। ऐक्टर ने उसे कलेजे से लगाया। आंखों में आँसू भर लाया। बोला - देखो बेटी सावधानी से जाना तुम पहली बार आई हो। रास्ते में कोई खुला पदार्थ मत खाना। स्टैंडर्ड ड्रिंक ले सकती हो। कोई कितना ही आग्रह करे शराब मत पीना। वह तुम्हें लूट लेगा। पैसा और सामान सँभालकर रखना। ये अंगरेज बड़े चोर होते हैं। बेईमान होते हैं। जरा असावधानी हुई तो चोरी कर लेंगे। बड़ी देर तक वह आँसू पोछता रहा और सलाह देता रहा। युवती इसे अंकित करती रही। रेल ने सीटी दी तो उसने लड़की को फिर कलेजे से लगाया और रोने लगा। दूसरे यात्री सचमुच बहुत प्रभावित हुए। रेल चली गई। ऐक्टर ने कहा - दस पाउंड का धंधा हो गया। ये अमेरिकी खुले दिल से पैसा देते हैं। आज दो आसामी और हैं।

जार्ज बर्नार्ड शा आयरिश थे। आयरलैंड पर ब्रिटेन ने कब्जा कर रखा था और आयरिश लोग आजादी के लिए लड़ रहे थे। 'आयरिश रिपब्लिकन आर्मी' हमारे जमाने का सबसे आतंकवादी संगठन है। बर्नार्ड शा जहाँ मौका मिलता अंगरेजों का मजाक उड़ाते थे। ऐसे उनके सैकड़ों वाक्य हैं- व्हेन ऐन इंगलिशमैन इज अनकंफर्टेबल ही थिंक्स ही इज मारल। उनका नाटक जान बुल्स अदर आइलैंड, अंग्रेज साम्राज्यवादियों पर कटु व्यंग्य है। 'मेन ऑफ डेस्टिनी' में भी उन्होंने कहलवाया है - जब अंगरेजों को अपना सड़ा माल बेचने के लिए कोई पिछड़ा देश चाहिए तो वे वहाँ जहाज में पादरी भेज देते थे। वहाँ के लोगों का झगड़ा उनसे होता है और कुछ पादरी मर जाते हैं। तब ईसा मसीह की सम्मान रक्षा के लिए वे जहाजों में सेना भेज देते हैं। उस देश के लोगों को हराकर कब्जा कर लेते हैं और ईसा से मेहनताने के रूप में वहाँ का बाजार ले लेते हैं।

अमेरिका में एक बहुत प्रसिद्ध लेखक हो गए हैं - मार्क ट्वेन। उन्होंने वहुत लिखा है। वे मुख्यत: विनोदी लेखक हैं। उनकी कुछ किताबें हैं - टाम सायर, फिकलबरी फिन, इनोसेंन्ट्स, एब्राड, प्रिंस एंड दी पापर। उन्होंने सामाजिक व्यंग्य भी लिखा है। लेटर फ्राम दि प्रिसाइडिग एंजेल। स्वर्ग से प्रधान फरिश्ता एक कोयला व्यापारी को पत्र लिखता है - हम सार्वजनिक प्रार्थना, जैसे चर्च की, को कम नंबर देते हैं। अधिक नंबर देते हैं मन की गुप्त प्रार्थना को। तुमने चर्च में प्रार्थना की प्रभु, सब लोग सुखी हों। पर घर पर तुमने मन से प्रार्थना की कि प्रभु, मेरे प्रतिद्वंदी कोयला व्यापारी का जहाज आ रहा है। तू तूफान उठा दे जिससे वह डूब जाए। तुम्हें सूचित किया जाता है कि तूफान अभी स्टॉक में नहीं है। फिर भी हम किसी तरह उसका कुछ नुकसान करेंगे। तुमने चर्च की प्रार्थना में तो कहा कि प्रभु, सब मनुष्य सुखी हों। पर घर में मन में कहा - मेरा यह पड़ोसी दुष्ट है। मुझे तंग करता है, इसे मौत दें दें। तुम्हें सूचित किया जाता है कि मौत सबसे बड़ी सजा है। वह उसे नहीं दी जा सकती। तुम्हारे संतोष के लिए हम उसे निमोनिया देते हैं। मार्क ट्वेन भारत आया था और उसने एक निबंध लिखा था - दि इंडियन बो।

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