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परसाई के राजनीतिक व्यंग्य

हरिशंकर परसाई

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :296
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9709
आईएसबीएन :9781613014189

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राजनीतिक विषयों पर केंद्रित निबंध कभी-कभी तत्कालीन घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए अपने पाठ की माँग करते हैं लेकिन यदि ऐसा कर पाना संभव न हो तो भी परसाई की मर्मभेदी दृष्टि उनका वॉल्तेयरीय चुटीलापन इन्हें पढ़ा ले जाने का खुद में ही पर्याप्त कारण है।

केनेडा में एक अंगरेजी व्यंग्य लेखक स्टीफन लीकाक हुआ है। वह राजनीति का अध्यापक था। एक आदमी राजनीति पर उसकी किताब लिए हँस रहा था। दूसरे ने कहा - तुम क्यों हँस रहे हो। यह तो राजनीति की गंभीर किताब है। पहले ने कहा - पर है तो स्टीफन लीकाक की। लीकाक ने अच्छे व्यंग्य लिखे हैं। एक लेख है - ऐन अफेयर विद माई लैंड लार्ड। मकान मालिक हर बात पर किराया बढ़ाने के लिए बदनाम हैं। लीकाक अपने मकान मालिक से कहता है - आप किराया नहीं बढ़ाते यह गलत बात है। इस बार आपको बढ़ाना होगा। महायुद्ध छिड़ गया है। हर चीज महँगी हो गई है। आपको किराया बढ़ाना होगा। मकान मालिक ने कहा - मैं नहीं बढ़ाऊँगा। लीकाक - सबने बढ़ा दिए हैं। क्या आप देशभक्त नहीं। आप देशद्रोही हैं। मालिक- 'आप मुझे देशद्रोही मान लीजिए। पर किराया नहीं बढ़ाऊँगा।'

आपने दीवार पर नए रंगीन कागज लगाए हैं आपको किराया बढ़ाना चाहिए। उसने कहा - मैं नहीं बढ़ाऊँगा। मैंने कहा तुमने सीढ़ी की मरम्मत कराई थी। कुछ किराया बढ़ाओ। उसने इंकार कर दिया। मैंने कहा - देखो, राष्ट्रीय संकट है। इस समय तो तुम्हें किराया बढ़ाना चाहिए।

उसने कहा - मैं किराया नहीं बढ़ाऊँगा।

मैंने उसे गोली मार दी।

यूरोप में चेक एक छोटी भाषा है। बहुत कम लोग इसे बोलते हैं। एक छोटा सा देश है चेकोस्लोवाकिया। पर मैंने कुछ साल पहिले एक चेक कहानी पढ़ी और मुग्ध हो गया। चेक साहित्य मैंने बहुत कम पढ़ा है। समकालीन सृजन पत्रिका में कहानी का अनुवाद छपा था।

एक शार्क मछली समुद्र से निकल कर रेत पर पड़ी है। आराम कर रही है। शार्क मगर सरीखी नहीं होती पर घातक शिकारी होती है। खासकर उसके जबड़े नुकीले बड़े और मजबूत होते हैं। वहीं एक नौकरशाह  (ब्यूरोक्रेट) घूम रहा था। बातें होने लगी। कहो शार्क क्या हाल है तुम्हारे? नौकरशाह मैं मजे में हूँ। शार्क तुम काम किस तरह करती हो। मैं सतह पर ही रहती हूँ और अपने स्तर पर ही घूमती हूँ। मैं भी ऐसा ही करता हूँ। शार्क, तुम्हारा काम करने का क्या तरीका है?

मैं लोकतांत्रिक ढंग पर काम करती हूँ। मैं छोटी मछलियों से कहती हूँ कि हमारे समान अधिकार हैं। तुम लोग मुझे खाओ। वे मुझे नहीं खा पातीं? तब मैं कहती हूँ - अब मैं अपने अधिकार का उपयोग करती हूँ। मैं उन्हें खा जाती हूँ। ठीक मैं भी ऐसा भी करता हूँ। तभी शार्क ने कहा - अब मैं पानी में जाती हूँ अलविदा। नौकरशाह ने भी विदा ली। कुछ देर बाद नौकरशाह पानी में कूद पड़ा। जब निकला तो उसके दाँतों में शार्क फँसी हुई थी।

यह कहानी कितनी दिलचस्प और यथार्थ है। हमारा नौकरशाह इतना ताकतवर है और उसके ऐसे मजबूत जबड़े हैं कि एक शार्क को भी पकड़ लेता है।

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