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परसाई के राजनीतिक व्यंग्य

हरिशंकर परसाई

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :296
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9709
आईएसबीएन :9781613014189

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राजनीतिक विषयों पर केंद्रित निबंध कभी-कभी तत्कालीन घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए अपने पाठ की माँग करते हैं लेकिन यदि ऐसा कर पाना संभव न हो तो भी परसाई की मर्मभेदी दृष्टि उनका वॉल्तेयरीय चुटीलापन इन्हें पढ़ा ले जाने का खुद में ही पर्याप्त कारण है।

रूसी लेखक एंटन चेखव ने लगभग 600 कहानियाँ लिखी हैं। काफी नाटक। संवेदनशील बहुत था। अध्यापकों की हालत पर दुखी होता था और इस बात से भी दुखी था कि शिक्षक छात्रों को पीटते हैं। बीमारी की हालत में वह साइबेरिया में कैदियों की दुर्गति देखने बर्फ पर से गया। उसे निमोनिया हो गया। अपने अनुभवों पर उसने एक पुस्तक भी लिखी। रूसी साहित्य में जो लोग हैं, वे बहुत कुछ भारतीय मालूम होते हैं। जैसे यह कहानी कोई भी भारतीय लेखक ऐसी ही लिखेगा।

इंसपेक्टर साहब बस्ती में निकलते हैं। वे सड़क पर कुत्ते का पिल्ला देखते हैं। वे आवाज देते हैं - किसका कुत्ता है यह? साले अपने-अपने गंदे कुत्तों को सड़क पर छोड़ देते हैं। इसकी सफाई भी नहीं की। अरे किसका है यह कुत्ता? साले को हंटर से छील दूँगा।

इसी समय आदमी ने कहा - साहब यह उस तरफ रहनेवाले कर्नल साहव का है। भटककर यहाँ आ गया है। यह सुनकर इंसपेक्टर एकदम बदल जाता है, कहता है - अरे कर्नल साहब का कुत्ता है, इतनी ऊँची जाति और कितना खूबसूरत है। इसकी सुंदर चाल तो देखो, अभी बच्चा ही है। इस बस्ती के लोग ऐसे गँवार हैं कि इसे नहलाया भी नहीं। इंसपेक्टर कुत्ते को बड़े प्यार से गोद में ले लेता है। वह उसे लेकर कर्नल साहब के यहाँ पहुँचाता है। कहता है - हुजूर आपका यह बढ़िया कुत्ता भटक कर बस्ती में चला गया था। बस्ती के लोग तो गँवार हैं, ये क्या जाने ऊँची जाति के कुत्तों को। मैं वहाँ से निकला, इसे देखते ही समझ गया कि यह कुत्ता आपका ही होना चाहिए, मैं इसको ले आया। इस कहानी का अंत स्पष्ट है। चेखव की एक और कहानी है, जिसमें नौकरशाही में आदमी बदल जाता है।

एक प्राइवेट स्कूल में वार्षिकोत्सव चल रहा था। अचानक अध्यापक के कमरे में एक आदमी मुखौटा लगाए हुए घुस आता है। वह पागल की तरह हरकतें करता है। कपड़े बहुत अच्छे पहने हैं। वह चिल्लाता, अजीब हरकतें करता, अश्लील मुद्राएँ बनाता। अध्यापक परेशान। वे आपस में कहते हैं - यह है कौन? वे उसे निकल जाने के लिए कहते हैं पर वह जैसे सुनता ही नहीं। अध्यापक उसे धमकाते हैं। बुरा कहते हैं - बदतमीज, नालायक, असभ्य, गुंडा, कमीना। उस पर कोई असर नहीं पड़ता। आखिर वह आदमी मुखौटा उतार देता है। सब देखते हैं कि वह स्कूल की प्रबंध समिति का अध्यक्ष है। सब बदल जाते हैं। ताली बजाने लगते हैं। एक अध्यापक कहता है - मैं तो पहले ही जान गया था कि ये भैया साब हैं। ऐसा अभिनय कोई कर ही नहीं सकता। दूसरा कहता है - वाह! बड़ा मजा दिया भैया साब ने। हम तो ऐसे ही गुस्सा बता रहे थे जैसे हम जानते ही नहीं कि कौन हैं, वाह भैया साब। लीजिए मिठाई खाइए।

घोर अवसाद के लेखक महान रूसी कथाकार दास्तोवस्की की जब मैंने एक व्यंग्य कहानी पढ़ी तो चकित रह गया।

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