ई-पुस्तकें >> परसाई के राजनीतिक व्यंग्य परसाई के राजनीतिक व्यंग्यहरिशंकर परसाई
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राजनीतिक विषयों पर केंद्रित निबंध कभी-कभी तत्कालीन घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए अपने पाठ की माँग करते हैं लेकिन यदि ऐसा कर पाना संभव न हो तो भी परसाई की मर्मभेदी दृष्टि उनका वॉल्तेयरीय चुटीलापन इन्हें पढ़ा ले जाने का खुद में ही पर्याप्त कारण है।
इतिहास में रूस और जर्मनी की अकसर लड़ाई हुई है। एक बार कुछ समझौता हुआ। जर्मनी ने भेंट में रूस को एक मगर भेंट किया। रूस में बड़ी खुशी से एक सुंदर टैंक में उसे रखवाया गया। उसे देखने भीड़ उमड़ती। एक दिन एक आदमी पत्नी और बच्चों सहित बिलकुल नजदीक से मगर देख रहा था। वह कुछ अधिक झुक गया और टैंक में गिर गया। बाहर हलचल मची। वह आदमी मगर के पेट से बोला - वैसे तो यहाँ आराम है। पर मगर मुझे चबा तो लेगा ही। तुम लोग मेरे मित्र गृहमंत्री के पास जाओ। मेरी बीबी को साथ में मत ले जाना। वह गृहमंत्री के सामने रोना चाहेगी। वे गृहमंत्री के पास जाते हैं। कहते हैं कि मगर का पेट चीरकर उस आदमी को निकालें। गृहमंत्री समझाता है - देखो मामला राजनैतिक है। इतने वर्षों बाद तो जर्मनी से संबंध कुछ सुधरे हैं। अब उनकी भेंट मगर का पेट चीरने से वे नाराज हो जाएँगे। हो सकता है वे लड़ाई शुरू कर दें, इसलिए उस आदमी से कहो कि देश के लिए अपना बलिदान कर दे।
अब देशी भाषा का नमूना। लेखक का नाम भूल गया। कई साल पहले अनुवादिका के साथ बैठ कर पढ़ी थी। कहानी का नाम याद है - कवि कुंदनलाल का मेघदूत। नहीं, यह परशुराम की कहानी नहीं है। परशुराम बांग्ला के बड़े लेखक हैं। उन्हें लोग व्यंग्य लेखक मानते हैं। पर उन्होंने विनोद लिखा है, व्यंग्य नहीं। खूब कल्पनाएँ, फँतासी उनमें है। वे पौराणिक पात्रों का उपहास करते हैं। वे ऐसे पात्र भी लेते हैं, जो 'लीजेऽ' कहलाते हैं।
एक सेठ कुंदनदास हैं। बहुत पैसेवाले। दुकानें, कारखाना, खेती, कई धंधे। पहले बादल देखकर उनके मन में प्रेरणा होती है कि वे भी मेघदूत लिखें।
वे एकांत में चले जाते हैं और काव्य साधना करते हैं। उनके मेघदूत में वे लिखते हैं।
सेठ कवि कुंदनदास का मेघदूत मैं काफी भूल गया। जो याद है। वह कुछ इस तरह है - मेघ, तू उत्तर की तरफ जाएगा। उधर अमुक नाम का एक नगर है। वहाँ मेरा कारखाना है, जिसका बीमा है। उसका सामान निकालकर मेरा मुनीम उसमें आग लगाएगा। तू वहाँ मत बरसना। आगे तुझे मेरी प्रिय सेठानी मिलेगी। उससे मेरा संदेश कहना कि सोने के भाव चढ़े हैं। गहने बेच दे।
दूसरी कहानी है वदन चौधरी की शोक सभा। लेखक का नाम याद नहीं। वदन चौधरी उस लोक में हैं। इधर उनके नगर में उनके लिए शोक सभा होनेवाली है। वदन चौधरी यमराज से कहते हैं - मुझे वहाँ भेज दीजिए। मैं सुनना चाहता हूँ कि लोग मेरे बारे में क्या कहते हैं। यमराज दो प्रेतों के साथ उन्हें वहाँ भेज देता है।
शोक सभा में एक वक्ता कहता है वदन चौधरी बड़े अच्छे थे। उन्होंने कई लोगों की सहायता की। वे समाज की सेवा बहुत करते थे।
दूसरा आदमी बोलने को खड़ा हुआ तो एक प्रेत उसके कान में घुस गया। वह आदमी बोलने लगा - सब झूठ है। वदन चौधरी नीच आदमी था। बेईमान था उसने कई आदमियों को लूटा। वह धोखेबाज था। चरित्रहीन था।
सभा में शोर होने लगा। एक लँगड़ा आदमी वक्ता के पास पहुँचा। बोला- तेरे कान में प्रेत घुस गया है। वही तुझसे यह बुलवा रहा है। निकल भूत। भूत निकल गया।
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