ई-पुस्तकें >> परसाई के राजनीतिक व्यंग्य परसाई के राजनीतिक व्यंग्यहरिशंकर परसाई
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राजनीतिक विषयों पर केंद्रित निबंध कभी-कभी तत्कालीन घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए अपने पाठ की माँग करते हैं लेकिन यदि ऐसा कर पाना संभव न हो तो भी परसाई की मर्मभेदी दृष्टि उनका वॉल्तेयरीय चुटीलापन इन्हें पढ़ा ले जाने का खुद में ही पर्याप्त कारण है।
क्रूर कर्म करके हँसना दूसरे को पीड़ा देकर हँसना, यह लकड़बग्घे की हँसी है। मैंने मनुष्य अवतार में कई लकड़बग्घे देखे हैं। सभी ने देखे होंगे। दंगों में आदमी लकड़बग्घा हो जाता है। लोगों को मारकर, घर में आग लगाकर जो अट्टहास करते हैं, वे लकड़बग्घे होते हैं। अंधे की लाठी छीनकर उसकी घबड़ाहट पर हँसनेवाले भी देखे हैं। कमजोर को पीटकर उसकी चीख पुकार पर ताली बजाकर हँसते और कहते, मजा आ गया यार, मैंने देखे हैं। इनका मुँह तोड़ा जाना चाहिए।
एक परिवार में बैठा था। परिवार में एक लड़की मोटी थी। इस कारण उसकी शादी नहीं हो रही थी। वह दुःखी और हीनता की भावना से पीड़ित थी। उस परिवार की मित्र दो शिक्षित महिलाएँ आई और उस लड़की से कहा- अरे सुषमा तू तो बहुत दुबली हो गई, और हँसने लगीं। लड़की की आँखों में आँसू आ गए और वह कमरे से बाहर चली गई। वे दोनों मूर्खा विदुषियाँ मुझे लकड़बग्घे की मादा लगी।
एक और घटना मुझे याद आ रही है। दो आदमियों ने कहीं से शास्त्री पुल के लिए रिक्शा तय किया। मगर उसे बढ़ाते-बढ़ाते कमानिया फाटक तक ले आए। दूकान पर उतर गए और उसे शास्त्री पुल तक के पैसे दे दिए। उसने कहा-बाबूजी, आपने शास्त्री पुल का तय किया था और कमानिया ले आए। और पैसा दीजिए। वे दोनों सोने की चेन लटकाए आदमी हँसने लगे। बोले, अरे यही तो शास्त्री पुल है। यह जो फाटक है, यही पुल है। रिक्शावाला कहने लगा - बाबूजी क्यों गरीब आदमी का मजाक करते हो। यह कमानिया फाटक है। वे दोनों फिर हँसने लगे। जितना रिक्शेवाला दीनता से गिडगिडाता तो वे दोनों अट्ठहास करते। आखिर लाचार रिक्शावाला चला गया। वे दोनों अट्टहास करने लगे। कहने लगे - अच्छा बेवकूफ बनाया साले को। बड़ी अदा से गिड़गिड़ा रहा था। हा, हा, हा, हा। मजा आ गया। यह लकड़बग्घों की हँसी थी।
मनुष्य को हँसना चाहिए। पर निर्मल, स्वस्थ हँसी हँसना चाहिए। जो नहीं हँसता, वह वनमानुष है। पर मनुष्य लकड़बग्घे की हँसी हँसे तो उसे गोली मार देना चाहिए।
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