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परसाई के राजनीतिक व्यंग्य

हरिशंकर परसाई

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :296
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9709
आईएसबीएन :9781613014189

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राजनीतिक विषयों पर केंद्रित निबंध कभी-कभी तत्कालीन घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए अपने पाठ की माँग करते हैं लेकिन यदि ऐसा कर पाना संभव न हो तो भी परसाई की मर्मभेदी दृष्टि उनका वॉल्तेयरीय चुटीलापन इन्हें पढ़ा ले जाने का खुद में ही पर्याप्त कारण है।

मैंने पंडित हजारी प्रसाद द्विवेदी की बात ऊपर की है। वे बैठते तो हँसी का फुहारा छूटता। न जाने किन-किन स्थितियों से वे हास्य निकाल लेते थे और बिखेर देते थे। देवताओं, ऋषियों-मुनियों में भी वे हँसने लायक प्रसंग निकाल लेते और अपनी टिप्पणी लगाकर अट्टहास करते और सबको हँसाते। बलराज साहनी शांति-निकेतन में अध्यापक रहे थे। उन्होंने यह कार्य छोड़ दिया। पर शांति-निकेतन उन्हें याद रहा। उन्होंने लिखा है-शांति-निकेतन से आनेवाले पूछते हैं, वहाँ के क्या हाल हैं? पंडितजी हँस रहे हैं न। उनके छात्र बताते हैं, शांति-निकेतन में वृक्षों की छाँह में कक्षाएँ लगती थी। अध्यापक छात्रों के साथ छाया में बैठ जाते थे। द्विवेदीजी छात्रों को लेकर किसी वृक्ष के नीचे बैठते, तो पास के अध्यापक अपने छात्रों से कहते- 'चलो, कहीं और बैठ कर पढ़ेंगे। इधर वे हजारी प्रसाद आ गए। वे हँसेंगे।'

द्विवेदीजी मंडली में बैठते तो मामूली बात से विनोद निकालकर हँसते और हँसाते। एक बार राजकमल प्रकाशन में हम लोग बैठे थे। कहने लगे - ये विदेशी लोग हमारे परिवारों को नहीं समझते। पोलैंड की एक शोध छात्रा मुझसे मिलने वाराणसी गई। मैं लखनऊ गया हुआ था। दिल्ली लौटकर उसने मुझे चिट्ठी लिखी - मैं आपके दर्शन हेतु वाराणसी पधारी थी। आपके दर्शन नहीं हो सके। परंतु आपकी 'सुपत्नी' से भेंट हुई। द्विवेदी अट्टहास करके बोले - एक तो यह लड़की गई नहीं, पधारी। फिर वह मेरी पत्नी को 'सुपत्नी' समझती है। वह समझती है, हमारे यहाँ सुपुत्र होता है, तो सुपत्नी भी होती होगी। ये नहीं जानती कि भारत में कोई सुपत्नी नहीं होती। क्यों शीला जी?

एक और गप्प गोष्ठी में द्विवेदी जी कहने लगे - एक विश्वविद्यालय में मैं मौखिक परीक्षा लेने गया। साथ में एक प्रोफेसर और थे। एक छात्रा घबडाती हुई आई। मेरे साथी ने उससे पूछा - मीरा की विरह-वेदना का वर्णन करो। लड़की ने दो वाक्य बोले और वह रोने लगी। हमने उससे जाने के लिए कह दिया। मेरे साथी ने कहा-इस लड़की को तो कुछ नहीं आता। वह रोने लगी। मैंने कहा - आता क्यों नहीं है। आपने वेदना का वर्णन पूछा था और बह रोने लगी। वेदना का इससे अच्छा वर्णन और क्या हो सकता है। इस पर ठहाके लगे।

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