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परसाई के राजनीतिक व्यंग्य

हरिशंकर परसाई

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :296
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9709
आईएसबीएन :9781613014189

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राजनीतिक विषयों पर केंद्रित निबंध कभी-कभी तत्कालीन घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए अपने पाठ की माँग करते हैं लेकिन यदि ऐसा कर पाना संभव न हो तो भी परसाई की मर्मभेदी दृष्टि उनका वॉल्तेयरीय चुटीलापन इन्हें पढ़ा ले जाने का खुद में ही पर्याप्त कारण है।

इन्हीं इब्राहीम की निष्ठा की एक परीक्षा और हुई। खुदा ने इब्राहीम से सपने में कहा - कि तेरी मेरे ऊपर अटल निष्ठा नहीं है। इब्राहीम ने कहा - है। खुदा ने कहा - तो तू कल परीक्षा दे। अपने बेटे का गला छुरे से काट। इब्राहीम तैयार हो गए। उन्होंने आँखों पर पट्टी बाँधी और लडके के गले पर छुरा रख दिया। लड़का भी खुश है, मैं खुदा का हुक्म मान रहा हूँ। पर खुदा तो खुदा है, उसने लड़के की जगह भेड़ रख दी। उसका गला इब्राहीम ने काट दिया। इसी घटना को लेकर एक ईद मनाई जाती है, जिसमें मक्का में लाखों भेडें कट जाती हैं। मुसलमान आमतौर पर, निजी तौर पर बकरे की कुर्बानी करते हैं। इसमें भी होडा-होड़ी आ गई है। कहते हैं शेख साहब इस साल पाँच हजार रुपए का बकरा काटेंगे। दूसरा कहता है - सैयद साहब दस हजार का बकरा काटेंगे।

नमरूद और हिरण्यकश्यप की कथा एक जैसी है। मगर उनकी बहनों के विचार दूसरे हैं। नास्तिकों का यह संघर्ष विश्वव्यापी रहा है। हिरण्यकश्यप असुर राजा था। सुर और असुर ये दो जातियाँ थीं। ये एक जैसे मनुष्य थे। ऐसा नहीं था जैसा संकेत दिया जाता है कि असुर, राक्षस आदि मनुष्य से भिन्न प्राणी हैं। हिरण्यकश्यप को अहंकारी बताया गया है। हो सकता है अपनी बुद्धि और चिंतन से ईश्वर का अस्तित्व वह नहीं मान सका हो। सृष्टि के आरंभ में लोग भय और अज्ञान के कारण सुख देनेवाली प्राकृतिक शक्ति को देवता या देवी मान लेते थे, और स्तुति करते थे।

दुख देनेवाली शक्तियों को इसी प्रकार अनिष्टकारी देव मानकर उनकी निंदा करते थे। फिर चिंतन का ईश्वर में एक स्वरूप निर्धारित किया पर इसमें बहुत लोग विश्वास नहीं करते थे - इन नहीं माननेवालों में कुछ परम विद्वान चिंतक होते थे। कुछ अहंकारी, मूर्ख।

हिरण्यकश्यप ने घोषणा कर दी कि - कोई ईश्वर नहीं है। मैं ही ईश्वर हूँ। उसकी बहन होलिका भाई से सहमत थी। छोटी उम्र का बेटा तभी ईश्वर में विश्वास करने लगा था। यह कथा वैष्णवों ने बनाई है। हमने स्कूल में जो पुस्तक पढ़ी थी उसमें एक चित्र था जिसमें प्रहलाद स्लेट पर  'राम' लिख रहा है। यह कथा पुरोहितों ने वैष्णव धर्म प्रचार के लिए बनाई। आगे यह कथा यों है - कि चिता में होलिका भतीजे को गोद में लेकर बैठती है और जलती चिता में जल जाती है। प्रहलाद बच जाता है। इससे यह सिद्ध कराया गया कि वैष्णव धर्म में उसका विश्वास था और विष्णु ने उसे बचाया। नास्तिक हिरण्यकश्यप की पराजय हुई।

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