ई-पुस्तकें >> परसाई के राजनीतिक व्यंग्य परसाई के राजनीतिक व्यंग्यहरिशंकर परसाई
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राजनीतिक विषयों पर केंद्रित निबंध कभी-कभी तत्कालीन घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए अपने पाठ की माँग करते हैं लेकिन यदि ऐसा कर पाना संभव न हो तो भी परसाई की मर्मभेदी दृष्टि उनका वॉल्तेयरीय चुटीलापन इन्हें पढ़ा ले जाने का खुद में ही पर्याप्त कारण है।
नए त्यौहार जैसे- 'न्यू इयर्स डे'। इसे नवधनी वर्ग के युवा रत्नों ने अपना त्यौहार मान लिया। इनके हुल्लड़ करनेवाले गिरोह भी होते हैं, जो अलग से त्यौहार मनाते तो सीकचों में होते। पर 'न्यू इयर्स डे' प्रतिष्ठा का त्यौहार है क्योंकि यह आलीशान होटलों में मनाया जाता है। देशी शराब के बदले यहाँ विदेशी शराब उडेली जाती है। सुरक्षित शानदार होटल का वैसे ही दबदबा रहता है। होली नई फसल का त्यौहार है। अनाज की बौनी, कटाई और उसे खलिहान लाना। ये त्यौहार किसान मनाते हैं। दुनिया भर में कृषि के त्यौहार मनाए जाते हैं। फिर इनके साथ कथाएँ, मिथ, आदि लग गए। ये अक्सर किसी खास धर्म में अटल आस्था के प्रचार के लिए कभी प्राचीन काल में गढ़ लिए गए। मैंने ऊपर शायर मिर्जा गालिब के शेर का अंश दिया है। पूरा शेर है-
ये क्या नमरूद की खुदाई थी
बंदगी में भी मेरा भला न हुआ।
मैं नहीं जानता नमरूद की कथा किसी त्यौहार के बारे में है। यह असल में धर्म में और ईश्वर में कट्टर विश्वास के लिए है। नास्तिक और आस्तिकों के संघर्ष बहुत हुए हैं और उनकी कथाएँ हैं। हरिण्यकश्यप और प्रहलाद की कथा भी एक ईश्वर में आस्था के लिए है। नमरूद एक ग्रीक बादशाह था। वह अपने को ईश्वर घोषित करता था। उसकी बहन होलिका से भिन्न विचार रखती थी। वह अपने भाई का दावा नहीं मानती थी। नमरूद को उसके महल के सामने जाकर इब्राहीम ने चुनौती दी। कहा - तू ईश्वर नहीं है तू झूठा ईश्वर है। नमरूद ने कहा क्यों नहीं - मैं आदमी की जान ले सकता हूँ। इब्राहीम ने कहा - तू जान ले सकता है, दे नहीं सकता। खूब बहस हुई। नमरूद ने गुस्से में सिपाहियों से कहा- लकड़ियाँ इकट्ठी करके उस पर पर इस इब्राहीम को बैठाकर आग लगा दो। आग लगा दी थी कि नमरूद की बहन चिता में कूद गई और चिता ठंडी हो गई। वे दोनों भागे। सिपाही उन्हें पकड़ने दौड़े तो ईश्वर ने उनके सामने कोहरा कर दिया और वे पकड़ नहीं पाए। ऐसे मौकों पर ईश्वर किसी न किसी तरह सहायक होता है।
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