ई-पुस्तकें >> परसाई के राजनीतिक व्यंग्य परसाई के राजनीतिक व्यंग्यहरिशंकर परसाई
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राजनीतिक विषयों पर केंद्रित निबंध कभी-कभी तत्कालीन घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए अपने पाठ की माँग करते हैं लेकिन यदि ऐसा कर पाना संभव न हो तो भी परसाई की मर्मभेदी दृष्टि उनका वॉल्तेयरीय चुटीलापन इन्हें पढ़ा ले जाने का खुद में ही पर्याप्त कारण है।
एक बात और साफ हो। यह माना जाता रहा है, कि पाकिस्तान का विचार शायर मुहम्मद इकबाल का था। यह गलत 'है। खान वली खान ने अभी अपनी किताब 'फैक्ट्स आर फैक्ट्स' में भी यह लिखा है। काफी साल पहले मैंने एक लेख पढ़ा था। बंबई में एक सुशिक्षित, काव्य और कला रुचि रखनेवाली महिला बेगम अतैया थी। उसकी मित्रता, रवीन्द्रनाथ ठाकुर से भी थी, और इकबाल से भी।
इकबाल ने इस महिला को लंदन से पत्र लिखा कि मेरे ऊपर यह झूठी तोहमत लग रही है कि पाकिस्तान का विचार मेरा है। यह पूरी तरह झूठ है। वास्तव में पाकिस्तान की योजना कैंब्रिज विश्वविद्यालय से एक हसन साहब ने बनाई थी, और टोरी पार्टी को दी थी।
इतिहास में एक तथ्य देखना चाहिए। जब महात्मा गाँधी के नेतृत्व में स्वाधीनता संघर्ष लड़ा जा रहा था, तब सब तरह से सांप्रदायिक संगठन क्या कर रहे थे? जो सांप्रदायिक संगठन अभी हैं, वे या उनके पितृ संगठन तथा मातृ संगठन क्या इस संघर्ष में शामिल थे। वे नहीं थे। आग्रह करने पर भी वे स्वाधीनता संग्राम की मूलधारा में शामिल नहीं हुए। उन्हें अंग्रेज हुकूमत में रहते हुए, अपने लिए विशेष सुभीतों की पड़ी थी और वे एक दूसरे से लड़ रहे थे। ये गाँधीजी से नाराज भी थे। जिस ब्रिटिश सरकार से वे विशिष्ट लाभ उठाने की कोशिश कर रहे थे, गाँधीजी उस सरकार को हटाने में लगे थे। ये लोग, गाँधीजी से डरे थे, और अभी भी डरते हैं।
आर्य समाज के लोगों ने जरूर स्वाधीनता संग्राम में भाग लिया।
समाज का सुधारवादी आदोलन था। वह आदोलन सीमित अर्थों में नवजागरणवादी था। आगे पुनरुत्थानवादी हो गया। लाला लाजपतराय आर्य समाजी थे। वे श्रमिक नेता भी थे। पहिले आल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस के अधिवेशन का उद्घाटन लाला लाजपतराय ने किया था। साइमन कमीशन के विरोध में जुलूस का नेतृत्व लाला लाजपत राय कर रहे थे। पुलिस अफसर सैंडर्स के हुक्म से पुलिस ने लाठियाँ चलाई और लालाजी बहुत घायल हो गए। अस्पताल में उनकी मृत्यु हो गई। लालाजी ने कहा था - मुझ पर किया गया हर वार ब्रिटिश साम्राज्यवाद के ताबूत में ठोंकी गई एक कील है। बाद में भगत सिंह ने सैंडर्स को गोली से मार डाला था। आजादी के बाद ऐसा होने लगा कि वे लोग जो आजादी के संघर्ष से दूर रहे, सबसे ऊँची आवाज में राष्ट्रप्रेम और राष्ट्रभक्ति को उठाने लगे। इससे भी आगे बढ़कर उन्हें राष्ट्रद्रोही कहने लगे, जिन्होंने राष्ट्र के लिए संघर्ष और बलिदान किए थे।
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