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परसाई के राजनीतिक व्यंग्य

हरिशंकर परसाई

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :296
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9709
आईएसबीएन :9781613014189

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राजनीतिक विषयों पर केंद्रित निबंध कभी-कभी तत्कालीन घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए अपने पाठ की माँग करते हैं लेकिन यदि ऐसा कर पाना संभव न हो तो भी परसाई की मर्मभेदी दृष्टि उनका वॉल्तेयरीय चुटीलापन इन्हें पढ़ा ले जाने का खुद में ही पर्याप्त कारण है।

यह गलत है। स्वयं गाँधीजी ने कहा कि दक्षिण अफ्रीका मं' मैंने जब सत्याग्रह किया किया, तब वह लेख मैंने नहीं पढ़ा था। बाद में पढ़ा था, और उससे मेरे विचारों की पुष्टि हुई।

सत्याग्रह शायद भारतीयों की प्रकृति में है। ध्रुव ने सत्याग्रह ही किया ऐतिहासिक शोध से मालूम होता है कि अठारहवीं और उन्नीसवीं सदी में भी किसान हफ्ता भर कचहरी या तहसील घेरकर बैठे रहते थे। एक बार एक महीने का बनारस बंद हुआ था। यह बंद इतना पूर्ण था, कि मुर्दो को नदी में बहाना पड़ता था। गाँधीजी ने इतिहास का सबसे बड़ा अहिंसक जन आंदोलन ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ चलाया।

गाँधी के विरोधी कहते हैं, कि गाँधीजी ने देश का विभाजन कराया पाकिस्तान बनवाया। दस्तावेज है, कि गाँधीजी ने कहा था - देश का विभाजन मेरी लाश पर होगा। पर ऐतिहासिक परिस्थितियाँ, मुस्लिम लीग की हठधर्मिता और ब्रिटिश सरकार की कूटनीति के कारण विभाजन हुआ। गाँधीजी धर्म के आधार पर राष्ट्र मानते ही नहीं थे। उन्होंने वाइसराय लार्ड माउंटबेटन से कहा था, कि आप देश बाँटिए मत। जिन्ना को प्रधानमंत्री बना दीजिए, और आप अंग्रेज चले जाइए। इसका यह मतलब नहीं कि गाँधीजी औरंगजेब का शासन ला रहे थे। गाँधीजी जानते थे, कि जिन्ना भी यह जिम्मेदारी लेने से इंकार कर देंगे। लंदन में लार्ड माउंटबेटन ने कृष्ण मेनन से पूछा कि क्या ऐसी सरकार चल सकेगी? कृष्ण मेनन ने कहा - मैं भी सोचता हूँ कि ऐसी सरकार नहीं चल सकती। पर वे महात्मा हैं। वे यह ठीक कहते हैं, कि आपको भारत छोड़ देना चाहिए।

गाँधीजी दंगाग्रस्त नोआखाली चले गए। इससे माउंटबेटन को राहत मिली। गाँधीजी का दिल्ली में होना, वाइसराय को अड़चन में डालता। माउंटबेटन खुशी में वक्तव्य देने लगे- ''दि महात्मा इज अवर वन मैन पीस फोर्स।''

देश का विभाजन गलत था, इतिहास विरोधी था। लार्ड माउंटबेटन ने एक साक्षात्कार में कहा - एक शाम मैं और सी. राजगोपालाचारी, (प्रथम भारतीय गवर्नर जनरल) बातें कर रहे थे। हम इस निर्णय पर पहुँचे, कि पाकिस्तान पचीस सालों में टूट जाएगा। और हमने देखा कि पाकिस्तान चौबीस साल कुछ महीनों में टूट गया। दो राष्ट्रों का विचार गलत था। गाँधीजी निराश हुए। पर फिर भी उन्होंने दोनों देशों में सद्भावना बनाए रखने के प्रयत्नों की योजना बनाई। उनकी पाकिस्तान की सद्भावना यात्रा का कार्यक्रम लगभग तय था। पर उनकी हत्या हो गई।

गाँधीजी की विडंबना थी, ब्रिटिश सरकार कांग्रेस को हिंदू कांग्रेस और गाँधीजी को हिंदू नेता कहती। और हिंदू सांप्रदायिक लोग उन्हें मुसलमानों का पक्षधर कहते थे। जहाँ तक जिन्ना का सवाल है, वह बीमार आदमी था। शरीर से और दिमाग से भी। कृष्ण मेनन ने लार्ड माउंटबेटन से कहा - आप खुद कहते हैं, कि जिन्ना मानसिक रोगग्रस्त है। ऐसा है, तो उसकी जगह मानसिक अस्पताल है, राजनैतिक विचार विमर्श की टेबिल नहीं। माउंटबेटन ने कहा - पर वह मुसलमानों का नेता है। कृष्ण मेनन ने कहा - उसे मुसलमानों का नेता आपने बनाया।

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