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परसाई के राजनीतिक व्यंग्य

हरिशंकर परसाई

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :296
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9709
आईएसबीएन :9781613014189

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राजनीतिक विषयों पर केंद्रित निबंध कभी-कभी तत्कालीन घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए अपने पाठ की माँग करते हैं लेकिन यदि ऐसा कर पाना संभव न हो तो भी परसाई की मर्मभेदी दृष्टि उनका वॉल्तेयरीय चुटीलापन इन्हें पढ़ा ले जाने का खुद में ही पर्याप्त कारण है।

मगर जैसा मैंने कहा, कुछ लोगों की मजबूरी है, गाँधी जी का विरोध करना। ये कौन लोग हैं? वे लोग जो मनुष्य की बराबरी में विश्वास नहीं करते। नस्ल, जाति, रंग, वर्ण, धर्म के कारण अपने को दूसरों से श्रेष्ठ मानते हैं। दूसरे समूहों से घृणा करते हैं। इनका जीवन मूल्य प्रेम नहीं घृणा होता है। ये हिंसा से अपने उद्देश्य की पूर्ति करना चाहते हैं। इन लोगों के लिए जरूरी है, गाँधीजी को बार-बार मारना। मगर ये डरते हैं लोगों से, क्योंकि आम आदमी घृणा, और हिंसा के विरोधी होते हैं। शिवसेना के नेता बाल ठाकरे ने, जो अपने को 'डिक्टेटर' कहते हैं, पिछले चुनाव में एक सभा में गोडसे की तारीफ भी की थी, और गाँधीजी की हत्या को देश के लिए अच्छा बताया था। यह भाषण भारतीय जनता पार्टी के मंच से दिया था। इसलिए फौरन अटल बिहारी ने लंबी कैफियत दी। गाँधी के प्रति श्रद्धा प्रकट की। उन्हें राष्ट्रपिता बताया, और उनकी हत्या की निंदा की। बाल ठाकरे ने पहले हेकड़ी बताई कि भारतीय जानता पार्टी अगर उनके विचारों से सहमत नहीं है, तो चुनाव गठबंधन से अलग हो जावे। मगर चारों तरफ से उन पर हमले हुए तो उन्होंने भी गाँधी की हत्या की निंदा की। गाँधी से सब डरते हैं। सबसे अधिक वे डरते हैं, जो उनके विरोधी हैं।

गाँधीजी ताल्सताय को 'गुरु' मानते थे। ताल्सताय के निवास में गाँधीजी के पत्र सुरक्षित हैं। पत्र के अंत में लिखा है - आपका अत्यंत आज्ञाकारी शिष्य - मो.क. गाँधी। ताल्सताय का विश्वास हृदय परिवर्तन में था। सत्याग्रह में था। उनकी अपार सहानुभूति गरीब, शोषित किसानों के प्रति थी। अपने उपन्यास 'पुनर्जन्म' में उन्होंने अपना चिंतन दर्शाया है।

उपन्यास के नायक नेख्लूदोव का पश्चाताप से हृदय परिवर्तन होता है। वह अपनी जमींदारी किसानों को बाँट देता है। सादा जीवन जीने लगता है। उसने नौकरानी लड़की से संभोग किया था, और उसे भूल गया था। वह लड़की वेश्या हो जाती है। उस पर एक व्यापारी को जहर देकर मारने का आरोप लगता हे। जूरी में नेख्लूदोव भी है। वह लड़की को पहचान लेता है। जेल में वह उससे मिलता है। उसकी सहायता करता हे। लड़की को सजा देकर साइबेरिया भेज दिया जाता है। नेख्लूदोव भी साइबेरिया जाता है, ओर वहाँ बसे कैदियों के जीवन में सुधार करने का प्रयत्न करता है, वह असफल होकर लौटता है। फिर वह जेल के कैदियों की हालत को सुधारने की कोशिश करता है। किसानों की हालत सुधारने की कोशिश करता है। असफल होता है।

ताल्सताय के नायक व्यक्तिगत प्रयास करते हैं इसलिए असफल होते हैं। महात्मा गाँधी ने इसे जन-आंदोलन का रूप दे दिया। स्वयं ताल्सताय ने अंतिम वर्षों में महसूस किया था कि इतने साल मैं अगर आदोलन में लगाता, तो किसानों की हालत बेहतर होती। सत्याग्रह, सविनय अवज्ञा आदोलनों को महात्मा गाँधी ने चलाया। कुछ लोगों का कहना है, सविनय अवज्ञा गाँधीजी ने अमेरिकी विद्रोही लेखक थोरो के निबंध 'सिविल डिसोबीडियेन्स' से सीखा।

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