ई-पुस्तकें >> परसाई के राजनीतिक व्यंग्य परसाई के राजनीतिक व्यंग्यहरिशंकर परसाई
|
10 पाठकों को प्रिय 194 पाठक हैं |
राजनीतिक विषयों पर केंद्रित निबंध कभी-कभी तत्कालीन घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए अपने पाठ की माँग करते हैं लेकिन यदि ऐसा कर पाना संभव न हो तो भी परसाई की मर्मभेदी दृष्टि उनका वॉल्तेयरीय चुटीलापन इन्हें पढ़ा ले जाने का खुद में ही पर्याप्त कारण है।
महात्मा गाँधी से कौन डरता है ?
गाँधी से कोई नहीं डरता, और सब डरते हैं। नाथूराम गोडसे महात्मा गाँधी से डरता था। उसने डर के कारण उनकी हत्या की। महात्मा गाँधी किसी से नहीं डरते थे। जिन्होंने गृहमंत्री सरदार पटेल से कहा था, कि मेरी प्रार्थना सभा में सादी वर्दी में भी पुलिस नहीं होनी चाहिए। यह इसके बावजूद कहा कि कुछ दिने पहिले प्रार्थना सभा में बम फोड़ा गया था।
लेकिन महात्मा गाँधी से सब डरते हैं। हमारे देश की दो ही मजबूरियाँ हो गई थी - महात्मा गाँधी और नेहरू द्वारा प्रचारित समाजवाद। यह मजबूरी इतनी बड़ी हो गई थी, कि दक्षिणपंथी पार्टी भारतीय जनतापार्टी ने 1980 में अपना कार्यक्रम 'गाँधीवादी समाजवाद' अपना लिया था। कुछ लोग रूस और पूर्वी यूरोप की घटनाओं के बाद यह घोषित करने लगे हैं, कि समाजवाद संदर्भहीन हो गया है, समाजवाद एक कपोल-कल्पना था। मगर सत्य यह है, कि सामाजिक न्याय का संघर्ष सृष्टि के आरंभ से रहा है, और सामाजिक न्याय की आकांक्षा भी रही है। इसे कोई भी नाम दिया जाय। इस संघर्ष और आकांक्षा का एक नाम समाजवाद है। सामाजिक न्याय की आकांक्षा और संघर्ष आगे भी जारी रहेंगे, चाहे जो नाम उसे दे दिया जाय। उस वास्तविक अर्थ में समाजवाद मरा नहीं।
...मैं कह रहा था कि गाँधी जी और समाजवाद इनके विरोधियों की भी मजबूरी है। गाँधीजी की प्रशंसा भी मजबूरी है, और गाँधीजी की निंदा भी मजबूरी है गाँधीजी के सिद्धांतों को अपनाना भी मजबूरी है, और उन सिद्धांतों का विरोध करना भी मजबूरी है। जो लोग मानवीयता, प्रेम, अहिंसा, दया, मानवजाति की एकता और सबका मंगल ही चाहते हैं, वे गाँधीजी के सिद्धांतों को मानते हैं। गाँधीजी की प्रेरणा से दुनिया के कई लोग स्वाधीनता, मानवीयता, मानव अधिकार के लिए उनके अहिंसा के तरीके से लड़े और लड़ रहे हैं। दक्षिण अफ्रीका के लोगों ने गाँधीजी सें प्रेरणा ली, और रंगभेद तथा श्वेत विदेशी साम्राज्यवाद के विरुद्ध अहिंसा और सत्याग्रह को संघर्ष का तरीका बनाया। अमेरिका में मार्टिन लूथर किंग ने अश्वेतों के बराबरी के मानव अधिकारों के लिए अहिंसक संघर्ष किया। उन्हें मार डाला गया। उनकी पली कोरेटा ने उनके शव को गाँधीजी के चित्र के सामने रखकर कहा - हे गुरु, आपका शिष्य आपकी राह पर चलकर शहीद हो गया।
|