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परसाई के राजनीतिक व्यंग्य

हरिशंकर परसाई

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :296
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9709
आईएसबीएन :9781613014189

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राजनीतिक विषयों पर केंद्रित निबंध कभी-कभी तत्कालीन घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए अपने पाठ की माँग करते हैं लेकिन यदि ऐसा कर पाना संभव न हो तो भी परसाई की मर्मभेदी दृष्टि उनका वॉल्तेयरीय चुटीलापन इन्हें पढ़ा ले जाने का खुद में ही पर्याप्त कारण है।

सबसे खतरनाक बात है - इस राजनीति के सारे क्रियाकलाप अलोकतांत्रिक और हिंसक होते हैं। इसने यह भी दिखा दिया है कि इसे संविधान, संसद और न्यायपालिका में कोई आस्था नहीं है। इस तरह के विचार और इस प्रकार की प्रणाली - यह गणतंत्र को तोड़ सकती है नष्ट कर सकती है। हमारे नेताओं ने, मनीषियों ने कामना की थी - एक महादेश, भारत होगा। इसमें विभिन्न धर्मों के, भाषाओं के, नस्लों के, जातियों के लोग भाईचारे के सीथ रहेंगे। रवींद्रनाथ ठाकुर ने एक कविता में कहा है - भारत मानव महासागर के तौर पर सब आओ। आओ आर्य, द्रविड़, शक, हूण आओ, मुसलमान आओ, ईसाई आओ। हम एक हो जाएँगे। लहरों की तरह हम कभी टकराएँगे पर फिर मिल जाएँगे। इन्हीं मान्यताओं पर हमारा संविधान बना। पर सांप्रदायिक राजनीति ने नफरत भर दी। मनुष्य की पहिचान बदल दी। इस देश के लोगों को यदि स्वतंत्र रहना है, राष्ट्रीय एकता रखना है, लोकतंत्र रखना है, तो जनता सही शिक्षण देकर इस घृणा की अमानवीय राजनीति को परास्त करे। एकमात्र और सबसे बड़ा काम यही है।

चिंता का विषय यह भी है, कि विश्व साहूकारों से, जिसका नेता अमेरिका है, बेहिसाब कर्ज लिया जा रहा है। कम कर्ज के साथ खुली और छिपी हुई शर्तें होती हैं। पैसे के साथ राजनैतिक जंजीरें होती हैं, पतनशील सभ्यता होती है, बाजार के जीवन मूल्य होते हैं विकृत सांस्कृतिक मूल्य होते हैं। यह आर्थिक और सांस्कृतिक उपनिवेशवाद है, जो आ रहा है। आर्थिक निर्भरता हमारे स्वतंत्र निर्णय के अधिकार को छीनेगी। आत्म निर्भर अर्थ-व्यवस्था नहीं पनपने देगी।

आशंकाएँ बहुत हैं। देश की हालत अच्छी नहीं है। पर संकट पहिले आए हैं, और हमने उन पर विजय पा ली है। देश में ऐसी शक्तियाँ हैं जो इन संकटों से जूझ कर विजय पा लेती रही है। हमारे सामान्य भारतीय जन में सद्भावना है। साधारण जन विवेकशील है।

राष्ट्रगीत जन-गण-मन में आगे कवि ने लिखा है-

पतन अम्युदय बंधुर पंथा

युग-युग धावित यात्री

हे चिर सारथि! तव रथ चक्रे

मुखरित पद दिन रात्रि

दारुण विप्लव माझे

तव शखंध्वनि बाजे

गाहे तव जय गाथा

जनगण ऐक्य विधायक जय हे

भारत भाग्य विधाता।


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