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परसाई के राजनीतिक व्यंग्य

हरिशंकर परसाई

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :296
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9709
आईएसबीएन :9781613014189

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राजनीतिक विषयों पर केंद्रित निबंध कभी-कभी तत्कालीन घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए अपने पाठ की माँग करते हैं लेकिन यदि ऐसा कर पाना संभव न हो तो भी परसाई की मर्मभेदी दृष्टि उनका वॉल्तेयरीय चुटीलापन इन्हें पढ़ा ले जाने का खुद में ही पर्याप्त कारण है।

रूजवेल्ट बेमन से ब्रिटेन, फ्रांस, रूस के साथ हिटलर के खिलाफ मोर्चे में शामिल हुए। मगर युद्ध सामग्री तब भी अमेरिका जर्मनी को बेचता रहा। यूरोप में लड़ाई तो लड़ रहा था रूस। अमेरिकी सिपाही इटली, फ्रांस में चहलकदमी करते थे। रूजवेल्ट ने मनुष्य जाति के विरुद्ध बड़ा अपराध किया। हीरोशिमा और नागासाकी पर अणु बम गिराने को मंजूरी देकर। जापान तो समर्पण कर ही रहा था। अणुबम गिराए गए सोवियत संघ को अपनी नई ताकत दिखाने के लिए।

रूजवेल्ट की न्यायपालिका से भी टकराहट हुई। रूजवेल्ट ने युद्ध के बाद एक योजना बनाई - 'न्यू डील'। इसके खिलाफ मुकदमा सर्वोच्च न्यायालय में हुआ और न्यायाधीशों के बहुमत से योजना नामंजूर हो गई। रूजवेल्ट ने सर्वोच्च न्यायालय से कहा कि मैं चार न्यायाधीश नियुक्त कर देता हूँ जो मेरे पक्ष के होंगे। तब बहुमत - 'न्यू डील' के पक्ष में होगा। ऐसा ही पहिले एक राष्ट्रपति एडक्स कर चुके थे।

ब्रिटेन का युद्धकालीन प्रधानमंत्री विंसटन चर्चिल अंग्रेजी भाषा का उस्ताद था। मुहावरे बनाता था और दूसरों को देता था। रोब गालिब करता कहीं भी। पर उसने खुद लिखा है कि स्तालिन ने उसे कायर कह दिया और वह चुप रहा। हुआ यह कि चर्चिल अफ्रीका में हिटलर के खिलाफ दूसरा मोर्चा खोलने के लाभ मास्को में स्तालिन को समझा रहा था। स्तालिन ने कहा - दूसरा मोर्चा यूरोप में क्यों नहीं खोलते ?

तुम अंग्रेज इतने कायर क्यों होते हो? चर्चिल ने लिखा है - मेरा अंग्रेज खून खौलने लगा पर मैं शांत रहा। स्तालिन समझा। मेरी पीठ पर हाथ रखकर कहा - चलो तैरेंगे। तैरने के बाद शराब पी। फिर बात हुई। मैंने चर्चिल को भाषा का जादूगर कहा है। पंडित नेहरू की मृत्यु पर उसने सबसे अलग भाव व्यक्त किए - नेहरू हैड कांकर्ड दि टू ग्रेटेस्ट वीकनेसेज आफ मेन - फीअर एंड हेट। चर्चिल ने ही दो अंगुलियों से अंग्रेजों का 'वी' अक्षर का अभिवादन चलाया था - वी फार विक्ट्री। देशवासियों को उसका संदेश भी प्रसिद्ध और मार्मिक था - आई कैन गिव्ह यू नथिंग बट ब्लड, स्वेट एंड टीअर्स।

चर्चिल की बात मैंने प्रसंग से हटकर इसलिए की कि वह लंदन में बैठा-बैठा मुहावरे बनाकर अमेरिका की तरफ फेंकता था और राजनीति में बहुत नासमझ अमेरिकी लोग उन मुहावरों पर चलते थे। चर्चिल ने पहला नारा दिया - रोल बैक कम्युनिज्म। अमेरिका कम्युनिज्म को गलीचे में लपेटने लग गया। नहीं लपेटा गया तो चर्चिल ने दूसरा नारा दिया - कंटेन, कम्युनिज्म। यानी जितने हिस्से में कम्युनिज्म है उतने में ही सीमित रखो। इसी नारे से प्रेरित होकर अमेरिका ने वियतनाम पर हमला कर दिया। अठारह साल बाद निक्सन को समझ में आया कि यह बेवकूफी हो गई और उसने फौजें वापस बुलाई। शर्मनाक हार। मेरा मतलब है दूसरे महायुद्ध के बाद से अमेरिकी राष्ट्रपतियों की विदेश नीति डर से बनती रही - विश्व साम्यवाद के डर से। सोवियत संघ के टूटने के बाद भी यह डर का भूत उतरा नहीं है। चीन है, वियतनाम है, क्यूबा है। अगर चीन और भारत के संबंध अच्छे हो गए तो अमेरिका साम्यवाद से डर से फिर काँपेगा और ऊलजलूल करेगा।

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