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परसाई के राजनीतिक व्यंग्य

हरिशंकर परसाई

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :296
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9709
आईएसबीएन :9781613014189

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राजनीतिक विषयों पर केंद्रित निबंध कभी-कभी तत्कालीन घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए अपने पाठ की माँग करते हैं लेकिन यदि ऐसा कर पाना संभव न हो तो भी परसाई की मर्मभेदी दृष्टि उनका वॉल्तेयरीय चुटीलापन इन्हें पढ़ा ले जाने का खुद में ही पर्याप्त कारण है।


भारतीय गणतंत्र - आशंकाएँ और आशाएँ


अभी जब मैं इस आलेख को लिखने बैठा हूँ संसद की कार्यवाही चलने नहीं दी जा रही है। इसके 10-12 दिन पहिले कुछ सदस्यों ने सदन में ही घोषणा की थी कि हम सदन की कार्यवाही चलने नहीं देंगे। और उन्होंने नहीं चलने दी। मजबूरन दोनों सदनों की एक हफ्ते के लिए छुट्टी करनी पड़ी। मैंने टेलीविजन पर कार्यवाही देखी। इतना शोर और दृश्य यह कि हमारे माननीय सदस्य दंगाई मालूम हो रहे थे। माना कि देश की हवा इस समय गर्म है। कुछ चीजों को लेकर आम आदमी उत्तेजित है, क्रोधित है। सड़क पर का आदमी मारपीट करके क्रोध, निकाल लेता है। मगर संसद सदस्यों के हाथ में लाठी नहीं है, यह गनीमत है। लाठी होती तो आशंका है, कि सदन में दंगा हो जाता। संसद सदस्यों का उत्तेजना और क्रोध प्रगट करने का तरीका संयत, तर्कपूर्ण शालीन और गरिमामय होना चाहिए। कुछ सालों में संसद की गरिमा बहुत कम हुई है, यह बात गणतंत्र दिवस के महीने में बहुत आशंका पैदा करती है। लोकतंत्र, गणतंत्र की बुनियाद संसद का यह हाल है तो गणतंत्र के बारे में चिंता होती है। माननीय संसद सदस्यों को आगे बजट पास करना है। अगर ऐसी ही हठवादिता रही तो बजट कैसे पास होगा? तब अराजकता के सिवा और क्या होगा।

दूसरी चिंता की बात है - न्यायपालिका की अवहेलना, बल्कि अपमान। सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना हो रही है। ऊँचे पदों पर निर्वाचन के द्वारा ऊपर बैठे राजपुरुष न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय की बेधड़क, बेहिचक अवमानना कर रहे हैं। सरकारें सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों की अवहेलना करती हैं। मुख्यमंत्री के स्तर के लोग झूठा शपथ पत्र देते हैं।

सर्वोच्च न्यायालय के सामने किए वादे तोड़ते हैं। यदि सर्वोच्च न्यायपालिका के प्रति हमारे उच्च पदस्थ नेताओं का यह रवैया है, तो इससे बड़ी झंझटें पैदा होंगी। सर्वोच्च न्यायालय केंद्रीय कार्यपालिका का आदेश मनवाने की हिदायत देगा, जिसका नतीजा होगा, केंद्र और राज्य में टकराव। सर्वोच्च न्यायालय गणतंत्र की हिफाजत करता है। वह संविधान की रक्षा करता है। संविधान का सही अर्थ बताता है। राज्यों के आपसी और केंद्र तथा राज्य के बीच के विवादों पर निर्णय देता है। सर्वोच्च न्यायालय की आवाज गणतंत्र के विवेक की सबसे ऊँची आवाज है। इस आवाज की अवमानना करना, या उसे दबाना गणतंत्र पर आघात है। सत्ताप्राप्ति की लालसा से उन्माद में आए राजनैतिक लोग समझें कि वे इस तरह, गणतंत्र को आघात लगा रहे हैं। वे उच्छृंखलता और अराजकता की ओर बढ़ रहे हैं। मैं सोचता हूँ - संसद चल नहीं सकेगी, न्यायपालिका की कोई नहीं मानेगा, तो इस देश का, इस गणतंत्र का आखिर क्या होगा? क्या यह बर्बर युग को लौट जाएँगे?

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