ई-पुस्तकें >> परसाई के राजनीतिक व्यंग्य परसाई के राजनीतिक व्यंग्यहरिशंकर परसाई
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राजनीतिक विषयों पर केंद्रित निबंध कभी-कभी तत्कालीन घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए अपने पाठ की माँग करते हैं लेकिन यदि ऐसा कर पाना संभव न हो तो भी परसाई की मर्मभेदी दृष्टि उनका वॉल्तेयरीय चुटीलापन इन्हें पढ़ा ले जाने का खुद में ही पर्याप्त कारण है।
एक दिन जब परिवार पार्क में होता है, एगलाइया प्रिंस से कहती है- कल तुम मुझे इसी समय इसी जगह मिलो।
प्रिंस न जाने क्या क्या सोचता दूसरे दिन पार्क में एगलाइया से मिलता है।
एगलाइया उसे कहती है- देखो तुम समझते हो कि मैं सुखी हूँ। मगर मैं एक बोतल में बूँद हूँ इस हवेली की। मेरी शादी कर दी जाएगी और मैं एक बोतल से दूसरी बोतल में बंद हो जाऊँगी। मैं इस बोतल से निकल जाना चाहती हूँ। इसमें तुम मेरी मदद करो। इसका यह अर्थ मत लेना कि मैं तुमसे शादी करूँगी। कैसी त्रासद स्थिति है। प्रिंस उससे प्रेम करता है। पर एगलाइया उससे सिर्फ भागने में मदद माँगती है।
पिता की वसीयत से प्रिंस मिश्किन को बहुत धन मिल गया था। वह गरीब नहीं रहा। संपन्न और भले आदमी की यह त्रासदी है। पूरे उपन्यास 'महामूर्ख' में प्रिंस मिश्किन को ऐसी त्रासदियाँ भोगनी पड़ती हैं। वह सीधा है, प्रपंच नहीं जानता, सबका भला करना चाहता है- इसीलिए महामूर्ख है।
दोस्तोवस्की के ये गरीब, पीड़ित, दलित, अत्याचार के शिकार लोग अपनी नियति को स्वीकार कर लेते हैं। रोते हैं, पर बदलने का प्रयत्न नहीं करते। विद्रोह, संघर्ष नहीं करते। फिर क्या राहत देते हैं दोस्तोवस्की इन्हें? कौन सा रास्ता? ईसाई कैथोलिक विश्वास। अपराध और दंड उपन्यास में एक युवा रस्खोल्नीकोव जेल में है। एक लड़की भी जेल में है। वे दोनों मोमबत्ती जलाकर प्रभु से प्रार्थना करते हैं। भाग्यवाद। प्रभुकृपा। मनुष्य कर्म-संघर्ष कुछ नहीं।
दोस्तोवस्की जैसे ईसाई विश्वासी लोग मानते हैं कि ईश्वर की शक्ति है तो उसके विरोधी शैतान की भी शक्ति है। दुख शैतान की शक्ति का परिणाम है। इसे प्रभु नष्ट कर देंगे।
रूस में उस समय कोई सामाजिक परिवर्तन का आंदोलन था ही नहीं। कुछ अराजकतावादी और निहिलिस्ट थे, मगर ये नकारात्मक थे। ताल्सताय भी पक्के ईसाई थे हालाँकि चर्च के और पादरियों के पाखंड और ढोंग के कटु आलोचक थे। ताल्सताय बहुत संवेदनशील थे। चिंतक भी थे। अहिंसा सत्य और हृदय परिवर्तन में उनका विश्वास महात्मा गाँधी की तरह ही था। शायद गाँधी पर उनका प्रभाव था। गाँधीजी ताल्सताय को चिट्ठी के अंत में लिखते थे - योर मोस्ट ओबीडिएन्ट प्यूपिल - एम. के. गाँधी। ताल्सताय ने सुधार और परिवर्तन के लिए हृदय परिवर्तन का प्रयोग किया। उनके उपन्यास 'पुनर्जीवन' में नायक एक बड़ा जमींदार नेख्लुदोव है। अपनी मौसी के यहाँ वह नौकरानी की लड़की से संभोग करता था। वह तो शहर लौट आता है।
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