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परसाई के राजनीतिक व्यंग्य

हरिशंकर परसाई

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :296
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9709
आईएसबीएन :9781613014189

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राजनीतिक विषयों पर केंद्रित निबंध कभी-कभी तत्कालीन घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए अपने पाठ की माँग करते हैं लेकिन यदि ऐसा कर पाना संभव न हो तो भी परसाई की मर्मभेदी दृष्टि उनका वॉल्तेयरीय चुटीलापन इन्हें पढ़ा ले जाने का खुद में ही पर्याप्त कारण है।

उधर लड़की को बच्चा हो जाता है। वह शहर आती है और वैश्या हो जाती है। वह एक व्यापारी को जहर देकर मार डालने के आरोप में अदालत में पेश की जाती है। नेख्लुदोव एक जूरी है। वह उसे पहिचान लेता है उसे अपने किए पर पछतावा होता है। उसका हृदय परिवर्तन होता है। वह जेल में उस लड़की से मिलने जाता है। उसे सांत्वना देता है। यह उसके लिए बेकार है। वह दस रूबल माँगती है और उनकी शराब पी जाती है। नेख्लुदोव जमींदारी नौकरों को बाँट देता है। लड़की को साइबेरिया भेजने की सजा होती है। वह साथ-साथ वहाँ भी जाता है। साइबेरिया के कैदियों की हालत सुधारने की कोशिश करता है पर कुछ नहीं होता। वह लौट कर जेल के कैदियों की हालत सुधारने की कोशिश करता है पर कुछ नहीं होता।

ये व्यक्तिगत प्रयत्न थे। गाँधी समझते थे कि ताल्सताय के उद्देश्य और भावना अच्छी है, पर व्यक्तिगत प्रयत्न से परिवर्तन नहीं होता। वह जन आंदोलन से होता है। इसीलिए उन्होंने जन आंदोलन चलाए।

आरंभ में मुक्तिबोध का नाम आया है। मैं दोस्तोवस्की और मुक्तिबोध की तुलना नहीं करता। तुलना हो भी नहीं सकती। इतना बताना जरूरी है कि मुक्तिबोध दुरवस्था को स्वीकार नहीं करते। वे आशा नहीं खोते। वे मनुष्य के कर्म और संघर्ष में विश्वास रखते हैं। उनका विश्वास मार्क्सवाद में था। मार्क्सवाद परिवर्तन की प्रेरणा देता है और संघर्ष के लिए प्रोत्साहन देता है। उनकी एक कविता 'भूल गलती' की ये पंक्तियाँ पेश करता हूँ : -

वह कैदकर लाया गया ईमान

सुलतानी निगाहों में निगाहें डालकर

बेखौफ नीली बिजलियों को फेंकता खामोश

उसको जिदंगी की शर्म जैसी शर्त नामजूंर

लेकिन उधर उस ओर

कोई बुर्ज के उस तरफ ऊँचा

अँधेरी घाटियों के गोल-गोल टीलोंवाले पेड़ों में

कहीं पर खो गया

मालुम होता है कि वह बेनाम

बेमालूम दर्रों के इलाके में

सचाई के सुबह के तेज अक्सों के धुँधलके में

मुहैया कर रहा लश्कर

हमारी हार का बदला चुकाने आयगा

सकंल्पधर्मा चेतना का रक्तप्लावित स्वर

हमारे ही हृदय का गुप्त स्वर्णाक्षर

प्रकट होकर विकट हो जायगा।

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