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परसाई के राजनीतिक व्यंग्य

हरिशंकर परसाई

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :296
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9709
आईएसबीएन :9781613014189

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राजनीतिक विषयों पर केंद्रित निबंध कभी-कभी तत्कालीन घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए अपने पाठ की माँग करते हैं लेकिन यदि ऐसा कर पाना संभव न हो तो भी परसाई की मर्मभेदी दृष्टि उनका वॉल्तेयरीय चुटीलापन इन्हें पढ़ा ले जाने का खुद में ही पर्याप्त कारण है।

रूसी नेता निकिता क्रुश्चेव के समय के और बाद के साहित्य में इस नौकरशाही का चित्र है। साहित्य सच्चा गवाह होता है। एक रूसी उपन्यास है 'पारहोल्स। सहकारी कृषि-फार्म के ट्रक में ड्राइवर-कंडक्टर पैसे लेकर सवारी बिठा लेते हैं। हमारा भारतीय मन यह जानकर प्रफुल्लित होगा - अरे वहाँ भी सवारी बिठा लेते हैं। सड़क अच्छी नहीं है। गढ़े हैं। एक जगह ट्रक पलट जाता है। एक आदमी बहुत ज्यादा घायल हो जाता है। कुछ किलोमीटर पर अस्पताल है। उसे वहाँ जल्दी और आराम से पहुँचाने के लिए पास के सहकारी फार्म के सचिव से ट्रैक्टर माँगते हैं। सचिव कहता है - ट्रैक्टर खेती के लिए है। इस काम के लिए नहीं दूँगा। लोग कहते हैं - क्या ट्रैक्टर आदमी की जान बचाने के लिए भी नहीं है? सचिव कहता है - खेती के सिवा किसी काम के लिए नहीं है। मैं नहीं दूँगा। वे लोग घायल को घोड़ागाड़ी में दचके खाते ले जाते हैं। डाक्टर उसे देखता है। कहता है - यह तो थोड़ी देर पहले मर गया। क्या तुम इसे किसी तेज वाहन पर आराम से नहीं ला सकते थे? साथ आए लोगों ने कहा - हमने सहकारी फार्म के सचिव से ट्रैक्टर माँगा था, पर उसने यह कहकर मना कर दिया कि ट्रैक्टर इस काम के लिए नहीं है। डाक्टर के शब्द हैं जो उपन्यास के भी अंतिम शब्द हैं- ''वह एक नौकरशाह है जो हत्यारा हो गया है।'

यूगोस्लाविया भी समाजवादी देश है। एक यूगोस्लाव कहानी मैंने पढ़ी जिसका अनुवाद आशुतोष सिंह ने 'समकालीन सृजन' में किया है। कहानी का सार है - एक नौकरशाह समुद्र के किनारे खड़ा है। उसे शार्क दिखती है। दोनों में बातचीत होती है। तुम किस तरह काम करती हो शार्क? वह बताती है कि मैं समानता की बात करती हूँ। छोटी मछलियों से कहती हूँ कि हम सब समान हैं। तुम मुझे निगल जाओ। वे कोशिश करती हैं और मुझे निगल नहीं पाती। तब मैं कोशिश करती हूँ और मैं उन मछलियों को निगल जाती हूँ। नौकरशाह शार्क की ताकत की तारीफ करता है और शार्क शुरू में ही नौकरशाह की ताकत की तारीफ करती है। दोनों इस बारे में बात करते हैं कि जब उनकी आलोचना होती है, तब वे क्या करते हैं। आखिर पंख फड़फड़ा कर शार्क समुद्र में चली जाती है। नौकरशाह विदा के लिए हाथ हिलाता है। फिर नौकरशाह भी समुद्र में कूद जाता हे। थोड़ी देर बाद वह निकलता है। उसके दाँतों में शार्क फँसी है। विश्वव्यापी नौकरशाही है। तीसरी दुनिया के नव स्वतंत्र देशों में वह अधिक शक्तिशाली और भ्रष्ट है। कल्याणकारी योजनाओं को यही नौकरशाही नाकाम करती है। वैसे दर्द लेकर जाना अच्छा है।


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