ई-पुस्तकें >> परसाई के राजनीतिक व्यंग्य परसाई के राजनीतिक व्यंग्यहरिशंकर परसाई
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राजनीतिक विषयों पर केंद्रित निबंध कभी-कभी तत्कालीन घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए अपने पाठ की माँग करते हैं लेकिन यदि ऐसा कर पाना संभव न हो तो भी परसाई की मर्मभेदी दृष्टि उनका वॉल्तेयरीय चुटीलापन इन्हें पढ़ा ले जाने का खुद में ही पर्याप्त कारण है।
उनका मतलब शायर के शब्दों में है-
खंजर कहीं चले पै तड़पते हैं हम अमीर
सारे जहाँ का दर्द हमारे जिगर में है।
ठीक है। मगर वहाँ आधों के दिल तो अपने ही दर्द से भरे थे। बाकी के दिल टिकिट की अनिश्चितता की धुकधुकी से भरे थे। गरीबों के दर्द को रखने के लिए दूसरा दिल कहाँ से लाएँ। पहाड़ी पर टँगे पिंजड़े के तोते के पास अपना दूसरा दिल तिलिस्मी किस्सों में रखा जाता है। दिल तो एक ही है, जैसे गोपियों ने उद्धव से कहा था -
उधौ,
मन नाहीं दस-बीस,
एक हुतो सो गयो स्याम संग।
फिर अपना दर्द पहले कि दूसरे का। अपना पेट पहले कि दूसरे का। बड़े-बड़े संतों ने पहले अपना देखा है। कबीरदास कहते हैं-
साईं इतना दीजिए जाये कुटुंब समाय
मैं भी भूखा न रहूँ साधु न भूखा जाय।
देखिए इस फक्कड़ कबीर को। पहले कुटुंब का पेट भरे, फिर मेरा - फिर कोई साधु आ जाय तो बचे-खुचे से उसका पेट भी भर जाय। खुद खाकर फिर साधु की सुध लेते हैं, कबीरदास।
अपना दर्द पहले। बंगलोर में 'जनता दल' स्थापना का सम्मेलन हुआ। चंद्रशेखर को जो दर्द हुआ, वह दयनीय था। चंद्रशेखर को वहीं दर्द उठा, जब उन्हें मालूम हुआ कि उनका आदमकद 'कटआउट' वहाँ नहीं लगा है। वह बाद में लगा तो राहत मिली। राजनेता को भी दर्द है, गरीबों को भी दर्द है। दोनों के दर्द अलग-अलग हैं। गरीबों के दर्द को राजनेता सार्वजनिक रूप से महसूस करते हैं। इलाज क्या है दर्द का? ये सब पार्टियाँ - लेफ्ट आफ दी सेंटर, सेन्ट्रिस्ट, राइट आफ दी सेंटर अव्याख्यायित समाजवाद खाती हैं और गाँधीवाद का कुल्ला करती है। इसके लिए दस सूत्र बनते हैं। जब मरहूम 'समाजवादी जनता दल' पैदा हुआ था, तब इकहत्तर सूत्री कार्यक्रम बना था - जी हाँ सेवंटी वन। लोगों को तो दस सूत्र ही याद नहीं रहते। अखिल ब्रह्मांड का जब अलौकिक लोकतंत्र बनेगा, तब किसी दल के इकहत्तर सूत्र होंगे। हम बेचारे अंतकोश मय प्राणी हैं। वैसे सब सूत्र अच्छे होते हैं।
कांग्रेस महासमिति के गत अधिवेशन में कुछ बहुत अच्छे फैसले किए गए, जिनकी विपक्ष के एक-दो नेताओं ने तारीफ की। जैसे निर्वाचित संस्थाओं में तीस प्रतिशत स्त्रियों को स्थान देना। मतदान की आयु अठारह वर्ष करना। बहुत अच्छे फैसले हैं। ये कानून भी बन गए। एक अच्छा फैसला है हर गरीब स्त्री को साल में दो साड़ियाँ देना। तमिलनाडु में एम. जी. रामचंद्रन ने यह किया था। यह फैसला स्त्री की भावनाओं को गहरे छूता है। रोटी देने से ज्यादा महत्वपूर्ण है साड़ी देना। स्त्री भूखी रह सकती है नंगी नहीं रह सकती। यह फैसला गरीब स्त्रियों को कांग्रेस से खुश करेगा।
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