लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> परसाई के राजनीतिक व्यंग्य

परसाई के राजनीतिक व्यंग्य

हरिशंकर परसाई

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :296
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9709
आईएसबीएन :9781613014189

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

194 पाठक हैं

राजनीतिक विषयों पर केंद्रित निबंध कभी-कभी तत्कालीन घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए अपने पाठ की माँग करते हैं लेकिन यदि ऐसा कर पाना संभव न हो तो भी परसाई की मर्मभेदी दृष्टि उनका वॉल्तेयरीय चुटीलापन इन्हें पढ़ा ले जाने का खुद में ही पर्याप्त कारण है।

इस सहयोग को ही गाँधीजी मित्रता कहने लगे। उन पर बाद में आरोप भी लगे कि उन्होंने अंग्रेजी फौज में सिपाही भर्ती कराए थे। दिलचस्प किस्सा विजय लक्ष्मी पंडित ने आत्मकथा में लिखा था। राष्ट्रसंघ में गोरी सरकार के खिलाफ प्रस्ताव आनेवाला था। भारतीय प्रतिनिधि मंडल की नेता विजय लक्ष्मी पंडित थीं। तब भी बहुत बूढ़े हो गए जनरल श्मट्स सत्ता में थे और वे भी राष्ट्र संघ में आनेवाले थे।

विजय लक्ष्मी ने लिखा है कि गाँधी जी ने मुझे बुलाया और कहा - बेटी जनरल श्मट्स मेरे दोस्त हैं तुम उनके दिल को बहुत चोट मत पहुँचाना। विचित्र बात है कि विजय लक्ष्मी तो गोरी सरकार पर चोट करने भेजी ही जा रही थीं भारत की ओर से।

विजय लक्ष्मी ने आगे लिखा कि मैंने बहुत जोरदार भाषण दिया, जिसमें जनरल श्मट्स के खिलाफ भी काफी सख्त बोला। मीटिंग समाप्त होने पर मैं जनरल श्मट्स से बचती रही। पर एक कोने में उन्होंने मुझे पकड़ ही लिया। उन्होंने मुझसे कहा - बेटी तुम्हारी विजय हुई मैं हार गया। पर तुम्हारी जीत की खुशी बहुत थोड़े समय की है। अब मैं आगामी चुनाव में हार जाऊँगा। दूसरी कट्टरपंथी सरकार आएगी और वह अधिक कठोर कानून लागू करेगी अपारथाइड। इसका मतलब है बिल्कुल अलगाव गोरे और काले में।

महात्मा गाँधी ने कहा था कि भारत की आजादी अधूरी होगी, जब तक दुनिया में कोई भी लोग गुलाम होंगे। हमें खुशी है। हम नेल्सन मंडेला समेत सारे दक्षिण अफ्रीकियों को बधाई देते हैं।


0 0 0

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book