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परसाई के राजनीतिक व्यंग्य

हरिशंकर परसाई

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :296
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9709
आईएसबीएन :9781613014189

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राजनीतिक विषयों पर केंद्रित निबंध कभी-कभी तत्कालीन घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए अपने पाठ की माँग करते हैं लेकिन यदि ऐसा कर पाना संभव न हो तो भी परसाई की मर्मभेदी दृष्टि उनका वॉल्तेयरीय चुटीलापन इन्हें पढ़ा ले जाने का खुद में ही पर्याप्त कारण है।


दक्षिण अफ्रीका में प्रकाश


दक्षिण अफ्रीका में लंबे संघर्ष के बाद आखिर रंगभेद और अलगाववाद खत्म हुए। चुनाव हुए जिनमें काले और गोरे ने भाग लिया। दक्षिण अफ्रीका में सबसे लंबी कैद भोगनेवाले नेल्सन मंडेला राष्ट्रपति हुए और उनके मंत्रिमंडल में एक से अधिक जातियों के मंत्री शामिल किए गए। यह भी एक दिलचस्प बात है कि जो गोरे शासक मंडेला को जेल में रखे थे वे ही इस कैदी के मार्फत मंत्री बने हैं। सरकार में यहूदी भी हैं, भारतीय भी। इसके पहले रोडेशिया (अब जिम्बाबवे) स्वतंत्र हुआ था और वहाँ के अधिकांश अंग्रेज वहीं बस गए और अपनी राजनैतिक पार्टी बना ली। यह बहुत अच्छी बात है कि कल के दुश्मन सब कुछ भूलकर सहयोग कर रहे हैं। कल के गोरे अत्याचारी शासक अब काले राष्ट्रपति के शासन में है। मनुष्य जाति एक है जिसमें रंग के, नस्ल के और जाति के भेद हैं। पर मूलत: सब एक हैं।

अफ्रीका को यूरोप के अंग्रेज 'दि डार्क कांटिनेंट' यानि अँधेरा महाद्वीप कहते थे। गोरे सिर्फ अपने को सभ्य मानते थे। जब से साम्राज्य स्थापित करने निकले तो उन्होंने इसे एक तरह का मिशन कहा। तर्क यह कि हम सभ्य हैं और वे असभ्य हैं. इसलिए हमारा कर्त्तव्य है कि हम उन्हें सभ्य बनाएँ। यह सभ्य बनाना एक ढोंग था। उस भूमि पर कब्जा करना था। प्रसिद्ध अफ्रीकी राष्ट्रीय नेता जोमो केन्याटा ने कहा है - गोरे पादरी हमें सभ्य बनाने भेजे गए। हमारे लोगों से उन्होंने कहा कि हम तुम्हें धर्म सिखाएँगे, उस समय बाइबिल उनके हाथ में थी और जमीन हमारे हाथ में। उन्होंने हमसे आँखें बंद कर प्रार्थना करवाई। प्रार्थना के बाद आंखें खोलीं तो देखा कि बाइबिल हमारे हाथ में है और जमीन उनके हाथ में। जार्ज बर्नार्ड शॉ ने अपना नाटक-'ए मैन आफ डेस्टिनी' में अंग्रेज साम्राज्यवादियों के बारे में कहलाया है- ''अंग्रेज जब कोई भूमि, अपना माल बेचने के लिए चाहते हैं तो पहले वे पादरी भेजते हैं। पादरियों से मूल निवासियों का झगड़ा हो जाता है, और कुछ पादरी मर जाते हैं। तब अंगेज फौज से भरे जहाज भेज देते हैं। वहाँ के लोगों को वे परास्त करते हैं और ईसा मसीह की प्रतिष्ठा की रक्षा के बदले में उस भूमि पर कब्जा करके राज करने लगते हैं।

उन्नीसवीं सदी के अंत में महात्मा गाँधीजी ने भारतीयों के प्रति बढ़ते जानेवाले भेदभाव के खिलाफ अहिंसक संघर्ष शुरू किया था। जो कार्ड जारी किया गया था उसे उन्होंने सार्वजनिक रूप से जला दिया। उन पर पुलिस ने लाठी चलाई और वे घायल हो गए। भारतीयों को तब कुली कहते थे। एक कोच में गाँधीजी बैठे थे। सवारियों में एक अंग्रेज को सिगरेट पीना था, उसने गाँधी से कहा ए कुली हट जा वहाँ से, वहाँ मैं बैठूँगा। गाँधीजी ने कहा - मैं नहीं उठूँगा। अंग्रेज उन्हें पीटने लगा पर गाँधीजी वहीं बैठे रहे। यह सत्याग्रह था।

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