लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> परसाई के राजनीतिक व्यंग्य

परसाई के राजनीतिक व्यंग्य

हरिशंकर परसाई

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :296
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9709
आईएसबीएन :9781613014189

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

194 पाठक हैं

राजनीतिक विषयों पर केंद्रित निबंध कभी-कभी तत्कालीन घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए अपने पाठ की माँग करते हैं लेकिन यदि ऐसा कर पाना संभव न हो तो भी परसाई की मर्मभेदी दृष्टि उनका वॉल्तेयरीय चुटीलापन इन्हें पढ़ा ले जाने का खुद में ही पर्याप्त कारण है।

राजा के और प्रजा के कर्म वैसे होंगे, तुलसीदास ने यह भी लिखा है-

कर्म प्रधान विश्व करि राखा।

जो जस करहि सो तस फल चाखा।।

पर सिखाया यह जा रहा है- हुई है वहि जो राम रुचि राखा, को करि तरक बढ़ावहि साखा। यानी भाग्यवाद, निष्कर्म, रामभरोसेवाद। मगर यह सिखानेवाले और आदोलन चलानेवाले दूसरों के अकर्म का फल चख रहे हैं। उनकी राज्य सरकारें हैं, मंत्री हैं, विधायक हैं, संसद सदस्य हैं।

भारतीय जन अर्थशास्त्री वित्तमंत्री मनमोहन सिंह के वक्तव्य पढ़ता है- सोना बेचने से देश बच गया, रुपये के अवमूल्यन से फायदा। पर मनुष्य का जो अवमूल्यन हो रहा है, उसकी तरफ किसी का ध्यान नहीं है। वित्त मंत्री कहते हैं- ''गैर जरूरी वस्तुओं का आयात कम करेंगे, जिससे विदेशी मुद्रा बचेगी। क्या गैर जरूरी है? इतनी विलास की वस्तुओं का इस्तेमाल कौन करते हैं? किन लोगों को 'फारेन का 'क्रेज' है? इस वर्ग को भारतीय हो जाना भी शर्म की बात लगती है। सबसे दुखदाई बात है कि महात्मा गाँधी ने जिनसे चरखा चलवाया था, विदेशी कपड़ों का बायकाट कराया, खादी पहिनवाई थी, वे और उनके वंश के नेताओं के शरीर पर वर्दी की तरह खादी का कुरता जरूर है, पर घर में सब विदेशी। अधिकांश की घड़ियाँ विदेशी, घर में विदेशी इलेक्ट्रानिक्स। सौंदर्य प्रसाधन विदेशी। आज महात्मा गाँधी जैसा कोई 'स्वदेशी' की पुकार लगानेवाला है नहीं। देश पर संकट है - यही लोग कहते हैं। पर संकट लाद देते हैं, आम भारतीय जनों पर।

एयर कंडीशंड बंगलों और दफ्तरों में चैन से रहनेवाले, बाजीगरी करनेवाले, इन बड़े-बड़े भारत-भाग्य-विधाताओं की अलग छोटी सी दुनिया है। तुलसीदास ने लिखा है-

सबसे भले विमूढ जिनहिं न व्यापै जगत गति।

इन्हें 'जगत गति' नहीं व्यापती। पर बाहर जगत है।

करीब, पैंतीस साल पहले हमने 'वसुधा' में मोहम्मद अली 'ताज' भोपाली की एक गजल प्रकाशित की थी, उसका एक शेर मुझे याद है-

तुम्हारी दम्भ के बाहर भी एक दुनिया है

मेरे हुजूर बड़ा जुर्म है ये बेखबरी

अगर यह बेखबरी जुर्म है, तो सजा भी मिलेगी।


0 0 0

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book