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परसाई के राजनीतिक व्यंग्य

हरिशंकर परसाई

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :296
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9709
आईएसबीएन :9781613014189

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राजनीतिक विषयों पर केंद्रित निबंध कभी-कभी तत्कालीन घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए अपने पाठ की माँग करते हैं लेकिन यदि ऐसा कर पाना संभव न हो तो भी परसाई की मर्मभेदी दृष्टि उनका वॉल्तेयरीय चुटीलापन इन्हें पढ़ा ले जाने का खुद में ही पर्याप्त कारण है।

यह आदमी संसद भवन देखता है। विधानसभा भवन देखता है। आलीशान बंगले देखता है। बढ़िया कारें देखता है। इसमें उसकी इतनी ही हिस्सेदारी है कि उसने मत दे दिया। इसके बाद उसकी कोई हिस्सेदारी नहीं रही। वह सिर्फ देखता है। जब प्रिंस आफ वेल्स दिल्ली आए थे, तब दरबार भरा था। बढ़िया कपड़े पहिने राजा नवाब। हीरे जवाहर से दमकते हुए। बड़े-बड़े अफसर। बडे-बड़े सेनापति तमगे लगाए। राजभक्त लोग रायबहादुर, राय साहब, खान बहादुर। फानूस रोशनी बिखेरते। अकबर इलाहाबादी ने लंबी नज्म में यह सब लिखा है। अंत में लिखा है-

सागर उनका साकी उनका

आँखें अपनी बाकी उनका

यह अंगरेज सरकार के जमाने की बात है। इस सदी के आरंभ की। आजादी के चवालीस साल बाद भी भारतीय जन कहता है-

सागर उनका साकी उनका

आँखें अपनी बाकी उनका

संसदीय परंपरा का स्वस्थ विकास अद्भुत है। 1952 और 1957 की संसद जिन्होंने देखी है, वे आज की संसद को देखकर सिर ठोंकते हैं। पहले लोकसभाध्यक्ष मावलंकर थे। उनके बाद सरदार हुकुमसिंह। मैंने देखा है, सदस्य बहुत शालीन व्यवहार करते थे। कोई सदस्य बहकता तो सरदार हुकुमसिंह उसे ऐसे डांटते थे, जैसे प्राथमिक शाला का अध्यापक छात्र को डाँटता है। अब यह हाल है कि सदस्य इतनी हुल्लड़ करते हैं कि राज्यसभा के सभापति डा. शंकरदयाल शर्मा रो पड़ते हैं। तर्क का स्थान कंठ और भुजा ले लिया है। सत्तापक्ष और विपक्ष हमारी संसद में जुड़, विवेकहीन और गैर जिम्मेदार हो गए हैं। सत्तापक्ष और विपक्ष इस भावना से सदन में बर्ताव करते हैं कि एक दूसरे को खत्म कर देंगे। और देशों में संसदीय परम्परा यह है कि जनहित और देशहित के लिए विवाद होता है। सत्तापक्ष की आलोचना विपक्ष मुद्दों पर करता है और सुझाव देता है। रचनात्मक विरोध और विवाद होता है। एक-दूसरे को धूल चटाने का काम नहीं होता। भारतीय जन देखता है कि जिस पार्टी को बहुमत मिल गया, वह कहती है, जनता ने हमें शासन का मेंडेट (जनादेश) दिया है। जो सत्ता में नहीं होते वे कहते हैं - हमें विरोध का जनादेश दिया गया है। हम इसका पालन करेंगे। इस विवेकहीनन अंधी हठवादिता का हाल यह है कि शासक दल कहे कि पाँच और पाँच दस होते हैं, तो विपक्ष के लोग कहेंगे - नहीं, सरकार गलत जानकारी दे रही है। पाँच और पाँच नौ होते हैं। हमें विरोध का जनादेश मिला है। अगर विपक्ष वाले सही सूचना दें कि अमुक इलाके में अकाल है, तो सरकार कहेगी कि यह झूठ है - वहाँ तो खूब फसल आई है। जनता को राहत पहुँचाने की कोई सही योजना का विपक्ष विरोध करेगा। और अगर विपक्ष सचमुच जनहित का कोई सुझाव दे तो सत्तापक्ष उसे फौरन जन विरोधी कहेगा।

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