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परसाई के राजनीतिक व्यंग्य

हरिशंकर परसाई

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :296
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9709
आईएसबीएन :9781613014189

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राजनीतिक विषयों पर केंद्रित निबंध कभी-कभी तत्कालीन घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए अपने पाठ की माँग करते हैं लेकिन यदि ऐसा कर पाना संभव न हो तो भी परसाई की मर्मभेदी दृष्टि उनका वॉल्तेयरीय चुटीलापन इन्हें पढ़ा ले जाने का खुद में ही पर्याप्त कारण है।

प्रकाशक ने मेरी पुस्तक उठाकर उसे दे दी। उसने नाम देखा और वापस करते हुए कहा - अरे इस कवि में क्या धरा है। बेकार है। मेरी मुट्ठी में रायल्टी के ढेर सारे नोट थे पर उन युवक की बात सुनकर लगा कि वे काँटे हैं। मेरी कविता में कुछ नहीं धरा है। मेरी कविता किसी को राहत नहीं दे सकती। फिर क्या लाभ ऐसी कविता लिखने से। मैं रात-भर बोल्गा नदी के किनारे घूमता रहा और सारे रूबल्स नदी में फेंक दिए। स्तालिन के बाद जब क्रुश्चेव सत्ता में आया और उदारता लाया, तब युवेतोशेंको ने कविता फिर लिखना शुरू कर दिया। वह तरुण था और एक तरुण युवा पीढ़ी कवियों की पैदा हुई। गोर्बाचोव ने भी आरंभ में कहा था कि यदि कुश्चेव को सुधार करने दिया जाता तो आज यह विस्फोट नहीं होता। कहा जाता है कि रूस में अफसरशाही बहुत सख्त थी।

मैंने कुश्चेव के जमाने में इस पर एक छोटा उपन्यास पढ़ा। उपन्यास का नाम है - 'सड़क के गधे'। कहानी यह है - को-आपरेटिव का ट्रक एक नियत स्थान पर आकर रुकता है और उस पर ड्राइवर कंडक्टर पैसे लेकर सवारियाँ बैठा लेते हैं। यह ठीक हमारे देश जैसा हुआ, जहाँ सरकारी ट्रक पर पैसे लेकर सवारी बैठा लेते हैं। बैठनेवालों में एक लेफ्टिनेंट और उसकी पत्नी भी हैं जो युवा हैं। दोनों में मतभेद है। यह शुरू में ही मालूम हो जाता है। सड़क पर बड़े-बड़े गड्डे हैं। खूब पानी भी बरसा है। इस सड़क पर ट्रक चलता है। दचके खाता है, हिलता-डुलता है और एक जगह जाकर पलट जाता है। काफी लोग घायल हो जाते हैं, उनमें एक बहुत घायल है। बाकी लोग सोचते हैं इसे कैसे बचाया जाय। लेफ्टिनेंट भी बहुत व्यस्त है परंतु उसकी पत्नी कहती है कि तुम्हें क्या लेना देना।

कुछ दूरी पर अस्पताल है जहाँ बहुत अच्छा सर्जन है पर प्रश्न है कि इस घायल को सर्जन के पास कैसे ले जाएँ। पास मंर एक को-आपरेटिव फार्म है। कुछ लोग वहाँ जाते हैं। को-आपरेटिव फार्म के मैनेजर से कहते हैं कि आप फार्म का ट्रैक्टर दीजिए, हम उस पर कपड़े बिछाकर इस घायल को लिटाकर जल्दी सर्जन के पास पहुँचा देंगे। फार्म का मैनेजर कहता है ट्रैक्टर नहीं दूँगा। ट्रैक्टर खेती के लिए है। वह दूसरे काम नहीं आ सकता। लोग गिड़गिड़ाते हैं कि दीजिए पर मैनेजर कठोरता से कहता है - नियम है कि ट्रैक्टर खेती के लिए है। वे लोग कहते हैं - क्या आदमी की जान बचाने के लिए भी नहीं है। मैनेजर कहता है - नहीं है।

एक घोड़ागाड़ी में आखिर वे लोग उस घायल को डालते हैं और दचके खाते हुए बड़े धीरे-धीरे उसे सर्जन के पास ले जाते हैं। सर्जन घायल को देखता है। कहता है - यह तो थोड़ी देर पहले ही मरा है। क्या तुम इसे किसी तेज वाहन में आराम से नहीं ला सकते थे। इसके प्राण बच जाते। वे लोग कहते हैं कि हमने को-आपरेटिव फार्म के मैनेजर से ट्रैक्टर माँगा था पर उसने कह दिया ट्रैक्टर खेती के लिए है इस काम के लिए नहीं। सर्जन कहता है - जो कि उपन्यास के भी आखिरी शब्द हैं और ये व्यवस्था पर कड़ी टिप्पणी हैं।

सर्जन कहता है - मैनेजर नौकरशाह है जो हत्यारा हो गया है। यह उपन्यास कुश्चेव के जमाने में छपने दिया गया और स्टालिन के जमाने की अफसरशाही, नौकरशाही का चित्र प्रस्तुत करता है।


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