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परसाई के राजनीतिक व्यंग्य

हरिशंकर परसाई

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :296
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9709
आईएसबीएन :9781613014189

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राजनीतिक विषयों पर केंद्रित निबंध कभी-कभी तत्कालीन घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए अपने पाठ की माँग करते हैं लेकिन यदि ऐसा कर पाना संभव न हो तो भी परसाई की मर्मभेदी दृष्टि उनका वॉल्तेयरीय चुटीलापन इन्हें पढ़ा ले जाने का खुद में ही पर्याप्त कारण है।

आगे चलकर फिर असाधारण पात्र आता है, जो खलनायक है- यूरिया हीप। लंबा, झुके कंधे, कुरूप चेहरा, शैतानी भरी आँखें। यूरिया हीप बड़ा षडयंत्रकारी है। वह हर तरह की कुटिलताएँ करता। वह स्कूल और हेडमास्टर की लड़की पर अधिकार चाहता है। वह सफल नहीं होता है। बार्किस, चाची सनकी, यूरिया हीप इन सबसे विचित्र है- मिस्टर मिकाबर। वह अद्भुत व्यक्ति है। बीवी है, बच्चे हैं, पर जीविका का कोई निश्चित आधार नहीं। पता नहीं वह कैसे परिवार को पालता है। मिकाबर परम आशावान है। बड़ी कठिनाई में भी वे हँसते रहते हैं। उनका प्रेरणा वाक्य है - समथिंग विल टर्न अप - यानी कुछ हो ही जाएगा। यह वाक्य वे हमेशा बोलते थे। यह वाक्य उनका जीवन मंत्र था। एक दिन डेविड ने उन्हें परिवार समेत एक गाड़ी में बैठकर जाते देखा। डेविड ने पूछा मिस्टर मिकाबर आप कहीं जा रहे हैं? मिकाबर ने हँसते हुए कहा - सिविल जेल। समथिंग विल टर्न अप। और हँसते हुए वह अनंत आशावान जेल की तरफ चल दिया। किसी से पैसा उधार लिए होंगे और पटाए नहीं होंगे, नतीजे में सिविल जेल हो गई। ये सब पात्र डेविड कापरफील्ड उपन्यास के हैं। डिकन्स ने बहुत लिखा है।

उपन्यास 'टेल आफ टू सिटीज'। यह बनावटी है। दो आदमियों की सूरत की समानता को कथा का आधार बनाया गया है। जैसे आस्कर वाइल्ड ने एक आदमी और गुण 'अर्नेस्ट' को लेकर नाटक लिख दिया। इस उपन्यास में फ्रांसीसी क्रांति के नेता हैं। इसमें डिकन्स ने एक विशिष्ट पात्र निर्मित किया है - मैडम द फार्ग यह स्त्री काफी हाऊस के काउंटर पर बैठी-बैठी बुनाई करती रहती है। पर वास्तव में वह क्रांति की नेता है जो चारों तरफ देखती, सुनती है और क्रांतिकारियों को खवर भेजती है। उपन्यास में क्रांति का सबसे बड़ा और सबसे कूर नेता राब्सपीअरे भी है।

स्टालिन के जमाने की सख्ती के बारे में बहुत प्रकाशित हो चुका। लेखकों को स्वाधीनता नहीं थी। एक युवा कवि युवेतोशेको था। वह क्रुश्चेव के जमाने में भी था। उसने अपने संस्मरणों की किताव लिखी है - मैं कविता लिखकर संपादक को भेजता था। वह छपकर आती तो मैं देखता कि अंत में एक पद जोड़ दिया है। वह मैंने नहीं लिखा था। मैं संपादक से पूछता कि यह पद मैंने नहीं लिखा था यह कैसे जोड़ दिया गया है। संपादक कहता - यह मैंने जोडा है। यदि नहीं जोड़ता तो तुम भी जेल में होते और मैं भी। उसी ने लिखा है, मैं प्रकाशक की दुकान पर रायल्टी लेने गया। उसने बहुत रूबल दिए। मेरी मुट्ठी नोटों से भरी थी। तभी एक युवक और युवती वहाँ आए। युवक ने प्रकाशक से कहा - मेरी प्रेमिका की माँ की मृत्यु हो गई है। कोई ऐसी पुस्तक दो जिसे पढ़कर उसे राहत मिले।

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