ई-पुस्तकें >> परसाई के राजनीतिक व्यंग्य परसाई के राजनीतिक व्यंग्यहरिशंकर परसाई
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राजनीतिक विषयों पर केंद्रित निबंध कभी-कभी तत्कालीन घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए अपने पाठ की माँग करते हैं लेकिन यदि ऐसा कर पाना संभव न हो तो भी परसाई की मर्मभेदी दृष्टि उनका वॉल्तेयरीय चुटीलापन इन्हें पढ़ा ले जाने का खुद में ही पर्याप्त कारण है।
एक और सीरियल है। एक साहब बाईस साल लंदन में रहते हैं। यहाँ एक कारखाने के प्रबंधक हैं। उनकी लड़की समाज-सेविका है। भारतीय हैं तो भारत लौटने की कृपा करते हैं। उनकी अविवाहित लड़की समाज-सेविका है। मैनेजर साहब को श्रमिक समस्या का सामना करना पड़ता है। वे ऐसा बताते हैं जैसे ब्रिटेन में कोई मजदूर समस्या है ही नहीं। वहाँ कारखाने के मालिक कारखाना अपने हित के लिए नहीं, मजदूरों के हित के लिए चलाते हैं। पूँजीवादी व्यवस्था में पता नहीं किस जगह पर ऐसा होता है। इन मैनेजर साहब को मजदूरों की हड़ताल का सामना करना पड़ता है। वे ऐसे परेशान हैं गोया ब्रिटेन में मजदूर हड़ताल उन्होंने देखी ही नहीं हो। वे मजदूर नेताओं को समझाते हैं। वे नहीं मानते। अब समाज-सेविका बेटी का काम। डैडी मजदूरों को भूखा मारकर हड़ताल तुड़वाना चाहते हैं। लड़की का समाज सेवी संगठन मजदूरों की स्त्रियों को हस्तोद्योग सिखाता और कराता है। इधर उसके पिता वापस ब्रिटेन जाने का तय कर लेते हैं। तभी पिता-पुत्री को एक साथ दिमागी चमक आती है। पिता को फौज का टैंक चालक मिलता है। वह बताता है कि आसपास तोप गोलों के बीच वह कैसे उत्साह और साहस से शत्रु के बीच घुस जाता है। देश के लिए। मैनेजर साहब सोचते हैं, यह आदमी देश के लिए गोलों की परवाह नहीं करता। मुझे भी देश के लिए हड़ताल से नहीं डरना चाहिए। वे भारत में ही रहने का तय करते हैं।
उधर समाज-सेविका बेटी को भी विचार कौंधता है। वह कहती है - स्त्री-पुरुष की अर्द्धांगिनी है। मजदूर पत्नी की सहमति के बिना हड़ताल पर कैसे जा सकते हैं। वह मजदूरों की स्त्रियों को भड़काती है। वे अपने पतियों पर जोर डालती हैं। नतीजा-मजदूर मैनेजर के पास आकर कहते हैं कि आप विलायत मत जाइए। हम काम पर लौटते हैं। हमें भड़काकर-डराकर नेताओं ने हड़ताल पर बिठा दिया था। मैनेजर और सुयोग्य बेटी मजदूर समस्या का क्या चमत्कारी हल कर डालते हैं। इसे कहते हैं, औद्योगिक शांति 'इंडस्ट्रियल पीस'। यह भी भारतीय 'पेरेस्त्रोइका' है। ये साहब जो मजदूरों के भले की चिंता में ही दुबले होते हैं पतित भारतीयों को शायद दुनिया की एकमात्र हड़ताल करनेवाली कौम मानते हैं। सामान्य आदमी जानते हैं, पर ये साहब जो लंदन में कारखाना चलाते रहे, नहीं जानते कि ब्रिटेन में साल भर की कोयला खान मजदूर हड़ताल हुई थी। बहरहाल, देश के लिए ये 'ब्रेन ड्रेन' में विदेश गए साहब भारत में ही रह जाते हैं। उनकी समाज-सेविका बेटी हड़ताल तुड़वाने का काम करती रहती है। बड़ी मेहरबानी।
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