ई-पुस्तकें >> परसाई के राजनीतिक व्यंग्य परसाई के राजनीतिक व्यंग्यहरिशंकर परसाई
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राजनीतिक विषयों पर केंद्रित निबंध कभी-कभी तत्कालीन घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए अपने पाठ की माँग करते हैं लेकिन यदि ऐसा कर पाना संभव न हो तो भी परसाई की मर्मभेदी दृष्टि उनका वॉल्तेयरीय चुटीलापन इन्हें पढ़ा ले जाने का खुद में ही पर्याप्त कारण है।
टेलीविजन का निजी यथार्थ होता है
टेलीविजन से लोगों को बहुत शिकायतें हैं। मैं कई विद्वानों के लेख पढ़ चुका हूँ। इस 'इडिएट बाक्स' काँ आलोचना में ये लेख परम पवित्र भारतीय दृष्टिकोण से लिखे गए होते हैं। जो मानता है कि हमें सिर्फ वैदिक मंत्रों का पाठ करना चाहिए और पाठ सुनना चाहिए। इन्हें शिकायत है अनैतिकता की, विज्ञापनबाजी की, उपभोक्तावाद की।
मुझे शिकायत है - कोलाहल की। कोलाहल प्रदूषण बहुत नुकसानदेह होता है। कोलाहल का बहुत बुरा असर स्नायुतंत्र पर, बुद्धि पर, संवेदना पर पड़ता है। मगर क्या करें? घर-घर टेलीविजन हैं और बहुत लोगों का मनोरंजन कोलाहल से होता है। बहुत लोगों को तकलीफ होती है, मगर भोगते हैं। ज्ञानी ने कहा है-
देह धरे को दंड है सब काहू को होय,
ज्ञानी भुगते ज्ञान सौं मूरख भुगते रोय।
गलत कहा है ज्ञानी ने। ज्ञानी भी रोकर ही भुगतता है। जब देह धारण की थी तब क्या पता था कि आगे चलकर लाउडस्पीकर का कोलाहल सुनना पड़ेगा। आगे चलकर टेलीविजन का कोलाहल। और चुनावों के मौसम होंगे तब एक साथ चार-चार लाउडस्पीकरों पर नारे लगाए जाएँगें। हमारा सौभाग्य है कि हम मुख्य भाग में नहीं रहते। बाहरी भाग 'सबर्बं में रहते हैं। ये नेपियर टाउन, राइट टाउन, सिविल लाइंस 'पॉश' मुहल्ले कहलाते हैं। इन मोहल्लों में चुनावों में हल्ला मचानेवाले नहीं आते। चुनाव प्रचारक मान चुके हैं इन मोहल्लों में जड़बुद्धि लोग रहते हैं। इन पर कहने, समझाने, चिल्लाने का कोई असर नहीं पड़ता। हमारी उपेक्षा से हमें चैन मिलता है।
भविष्यवादी चिंतक, समाजशास्त्री, मनोविज्ञानशास्त्री चिंतित हैं। भविष्यवादी कहते हैं कि इक्कीसवीं सदी के मध्य तक पूरी दुनिया कोलाहलमय हो जाएगी। तब क्या करेगा आदमी? क्या तब कानों में 'साइलेंसर' लगाएगा जैसे ऊँचा सुननेवाले हियरिंग एड लगाते हैं। सब बहरे हो जाएँगे तो संवाद कैसे होगा? क्या हाथ के इशारे से सामनेवाले से कहा जाएगा कि तू 'साइलेंसर' निकाल ले, मुझे बात करना है। इस कोलाहल से लोग सवंदेनशून्य हो जाएँगे। कोलाहल में प्रेमी-प्रेमिका प्रणयवार्ता कैसे करेंगे? लोग अधपगले हो जाएँगे। गोर्बाचेव और जार्ज बुश दुनिया को अणु हथियारों से बचाने की योजना पर विचार करते हैं। उन्हें मनुष्य जाति को कोलाहल से बचाने पर भी विचार करना चाहिए। अगर मनुष्य-आणविक हथियारों से बच भी गए, तो वे कोलाहल से पागल हो जाएँगे।
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