ई-पुस्तकें >> परसाई के राजनीतिक व्यंग्य परसाई के राजनीतिक व्यंग्यहरिशंकर परसाई
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राजनीतिक विषयों पर केंद्रित निबंध कभी-कभी तत्कालीन घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए अपने पाठ की माँग करते हैं लेकिन यदि ऐसा कर पाना संभव न हो तो भी परसाई की मर्मभेदी दृष्टि उनका वॉल्तेयरीय चुटीलापन इन्हें पढ़ा ले जाने का खुद में ही पर्याप्त कारण है।
आगे भी हमारे जैसा उस उपन्यास में है। सड़क पर गड्ढे हैं। ट्रक का एक्सीडेंट हो जाता है। एक आदमी बहुत घायल हो जाता है। लोग पास के सहकारी कृषि फार्म में मैनेजर से कहते हैं - ट्रैक्टर दे दीजिए। हम इस घायल को कुछ किलोमीटर दूर अस्पताल ले जाते हैं। यह बच जाएगा। मैनेजर कहता है - ट्रैक्टर खेती के लिए है, घायल ढोने के लिए नहीं। आखिर वे उसे घोड़ा गाड़ी में दचके खाते हुए ले जाते हैं। सर्जन उसे देखता है। कहता है - यह थोड़ी देर पहिले मरा है। क्या तुम इसे तेज वाहन में आराम से नहीं ला सकते थे? लोगों ने कह दिया कि सहकारी फार्म के मैनेजर ने ट्रैक्टर नहीं दिया। कहा - ट्रैक्टर इस काम के लिए नहीं। सर्जन ने कहा - वह नौकरशाह है जो हत्यारा हो गया है। हमारे देश के नौकरशाह भी हत्यारे हो जाते हैं। इंग्लैंड के नौकरशाह भी हो जाते होंगे। हमने नौकरशाही उन्हीं से तो सीखी है।
यह सब प्रसंगवश। आदमी दुनिया भर में लगभग एक सा आचरण करता है। अंतर होता है व्यवस्था का। शराबी किसान सब कहीं नशे में अपनी औरत को नीलाम करते हैं। तो वह अंगरेज किसान अपनी औरत को दूसरे को बेचकर उस गाँव से चला जाता है। दूसरे गाँव में बस जाता है।
ग्लानि उसे होगी। वह बदलता है। उस का गाँव में काम जमता है। इज्जतदार बन जाता है। अपने गुजरे जीवन को भूल जाना चाहता है। चाहता है कि कोई परिचित उसे नहीं मिले। वह नया दूसरा आदमी होना चाहता है। इस गाँव में भी हलका सा कलंक उसे लगता है। वह एक स्त्री के घर एक दिन पाया जाता है। कलंक फैल जाता है, पर उसकी प्रतिष्ठा नहीं जाती है। चुनाव होते हैं और वह मेयर हो जाता है। लोकप्रिय है। प्रतिष्ठा है। कोई नहीं जानता कि मेयर साहब अपनी औरत को बेचकर आए हैं। पर उसकी पत्नी उसका पता लगाती हुई आती है। जब बैठक चल रही है, मेयर कुर्सी पर है तब स्त्री बरामदे से निकलती है। दोनों एक-दूसरे को देख लेते हैं। मेयर का पानी उतर जाता है। इसी में हार्डी ने गाँव के बड़े किसान की जवान बेटी और दूसरे गाँव के युवा अनाज व्यापारी की प्रेमकथा भी जोड़ दी है।
इंग्लैंड के ग्रामीण जीवन में ऐसा ही होगा। किसानों का कोई आंदोलन नहीं। शासन से कोई शिकायत नहीं। कोई सामाजिक संघर्ष नहीं। कहीं से शोषण नहीं। एक सपाट जीवन। सुखी जीवन। समस्याएँ हैं तो व्यक्तिगत। गरीबी है। अमानवीकरण भी है। शराबखोरी है।
प्रेमचंद की बात अलग है। भारत का किसान भी अलग है। ग्राम भी भिन्न प्रकार के हैं। अंगरेज साम्राज्यवाद है। वह हर तरह से किसान को चूसता है। जालिम जमींदार है। वह सताता और लूटता है। सरकारी अमले अलग शोषण करते हैं। किसानों के अपने अंतर्विरोध है, कुप्रथाएँ हैं। एक विराट कैनवस है प्रेमचंद का। गहरी संवेदना है। सबसे ऊपर प्रेमचंद के पास क्रांतिकारी दृष्टि है। बदलने का नजरिया है। मार्मिक अभिव्यक्ति है। जीवंत भाषा और मुहावरे हैं।
टामस हार्डी दिलचस्प कथाकार हैं मात्र। प्रेमचंद व्यापक दृष्टि के क्रांतिकारी लेखक है।
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