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परसाई के राजनीतिक व्यंग्य

हरिशंकर परसाई

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :296
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9709
आईएसबीएन :9781613014189

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राजनीतिक विषयों पर केंद्रित निबंध कभी-कभी तत्कालीन घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए अपने पाठ की माँग करते हैं लेकिन यदि ऐसा कर पाना संभव न हो तो भी परसाई की मर्मभेदी दृष्टि उनका वॉल्तेयरीय चुटीलापन इन्हें पढ़ा ले जाने का खुद में ही पर्याप्त कारण है।

बाथशेवा रोजमर्रा के कार्यों में लगी रहती है। मामूली उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। कोई दूसरा पुरुष उसके संपर्क में आता नहीं है। सार्जेंट ट्राय से उसका ऐसा गहरा संबंध हुआ नहीं है कि शादी का प्रस्ताव हो। तभी एक घटना घटती है। खलिहान के पास एक नाला है। एक रात उसमें बहुत बाढ़ आती है। फसल को पानी बहाकर ले जाने का खतरा है। वहाँ केवल बाथशेवा और वह युवा सहायक है। दोनों जुट जाते हैं। युवा सहायक आश्चर्यजनक रूप से मेहनत करके, तरकीबें करके फसल को बचा लेता है। दोनों बहुत प्रसन्न हैं। बाथशेवा उस युवा की बहुत तारीफ करती है। उसे धन्यवाद देती है। इस युवक के प्रति उसकी कोमल भावना जागती है। इस बहाव में सार्जेट ट्राय कहीं बह जाते हैं। बाथशेवा किसान से शादी करती है।

अच्छी दिलचस्प कथा है। पर इस कथा को छोटे शहर के मध्यम वर्ग पर लिख दो कोई फर्क नहीं पड़ेगा। दिलचस्प कथा यह बनी रहेगी। इस कथा में विशिष्ट ग्रामीणपन नहीं है। परिवेश ग्रामीण है, पर पात्र कहीं के भी हो सकते हैं और उनका जीवन किसी खास सामूहिक संघर्ष का प्रतिनिधि नहीं है।

एक और उपन्यास है। हार्डी का मेयर आफ केस्टर ब्रिज। कुछ देशों में ग्राम पंचायत के अध्यक्ष को भी मेयर कहते हैं। हमारे देश में बड़े शहर के निगम के अध्यक्ष को मेयर कहते हैं। कथा का आरंभ गाँव के बाहर स्थित शराबघर से होता है। प्रेमचंद की 'कफन' कहानी में शराबघर है। वहाँ माधव की पत्नी की अंतिम क्रिया करने के लिए जो चंदा बाप बेटे एकत्र करते हैं उसकी शराब पी लेते हैं घीसू और माधव। विचित्र आचरण करते हैं किसान यहाँ।

एक किसान बहुत अधिक शराब पी लेता है। वह चिल्लाता है - मैं अपनी बीबी को बेचना चाहता हूँ। बोलो बोली। उसकी बीबी वहाँ है। वह विरोध करती है। पर बोली लग जाती है और एक किसान से पैसे लेकर वह कहता है - जाओ ले जाओ मेरी बीबी को। इस तरह की हरकत निम्न वर्ग के किसान हमारे यहाँ भी नशे में कर सकते हैं पर यह आम नहीं है। कुछ बातें सब कहीं एक सी होती है। रूस में क्रुश्चेव ने लेखकों को कुछ स्वतंत्रता दी तो मैंने ताजा उपन्यास पढ़ा - पार होल्स (गड़ढे) उसमें मैंने पढ़ा कि वहाँ भी वैसा ही होता है जैसा हमारे यहाँ। नियत स्थान पर सहकारी फार्म का भरा हुआ ट्रक रुकता है। वहीं पैसे लेकर सवारियाँ बिठा लेता है। हमारे यहाँ भी सरकारी ट्रक में सवारियाँ बिठा ली जाती हैं।

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