ई-पुस्तकें >> परसाई के राजनीतिक व्यंग्य परसाई के राजनीतिक व्यंग्यहरिशंकर परसाई
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राजनीतिक विषयों पर केंद्रित निबंध कभी-कभी तत्कालीन घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए अपने पाठ की माँग करते हैं लेकिन यदि ऐसा कर पाना संभव न हो तो भी परसाई की मर्मभेदी दृष्टि उनका वॉल्तेयरीय चुटीलापन इन्हें पढ़ा ले जाने का खुद में ही पर्याप्त कारण है।
चेखव की दो कहानियाँ
महान कहानीकार चेखव की कहानियाँ बार-बार गूँजती है। चेखव की कहानियों में गहरी संवेदना, जटिल मनस्थितियाँ, विविध जीवन स्थितियाँ, बहुरंगी चरित्र हैं। उनमें गहरी पीड़ा है और व्यंग्य है। चेखव की कहानी इसीलिए बार-बार याद आ जाती है। उनके चरित्र हमें मिल जाते हैं। उन जैसी स्थितियाँ मिल जाती हैं।
अचानक चेखव की दो कहानियाँ मुझे याद आ गई। एक बहुत मशहूर कहानी है- 'क्लर्क' (मुंशी बाबू) इस पर बहुत चर्चा हुई है और होती है। दूसरी कहानी कम जानी हुई है। इसे चेखव ने अपने संग्रहों में नहीं दिया था। यह उनके द्वारा 'रिजेक्टेड' कहानी जैसी है। चेखव एक पत्र में विनोद स्तंभ लिखते थे। तरह-तरह के विषयों पर विनोद करते थे। एक विनोद लेख में एक विशेषज्ञ बताता है कि किसी स्त्री को उसके पति के मारफत ही कैसे पटाना चाहिए- 'अजगर और खरगोश।' ऐसे हलके-फुलके विपयों पर वे मनोरंजक लिखते थे। इन विनोद रचनाओं को चेखव ने हलका-फुलका समझकर, अपने संग्रहों में स्थान नहीं दिया था। बाद में इनका संग्रह छपा। अंग्रेजी में उसका नाम है- 'दि अननोन चेखव'। इसमें एक कहानी है जिसका हिंदी नाम 'किराएदार' हो सकता है। अंग्रेजी में नाम है 'दी लॉजर' जो ज्यादा अर्थगर्भित है। इस कहानी पर लगभग ध्यान नहीं दिया गया। क्या है इन दोनों कहानियों में? ये एक साथ क्यों कौंधी? चेखव में गहरी संवेदना थी। उनकी कहानियों में विषाद भी है और व्यंग्य भी। जीवन की अनगिनत स्थितियों को चेखव ने लिया है। इन दोनों कहानियों- 'क्लर्क' और 'लॉजर' में जो पात्र हैं, उनके व्यवहार पर हँसी आती है। पर उनका जीवन एक त्रासदी है। चेखव की संवेदना और व्यंग्य क्षमता पर बाद में लिखूँगा। अभी इन दोनों कहानियों के बारे में।
क्लर्क नाट्यगृह में बैठा नाटक देख रहा है। उसके ठीक सामने ऊपर दर्जे में उसका साहब बैठा है। क्लर्क वहाँ भी दबा-दबा सा बैठा है। क्लर्क को जुकाम है। उसे छींक आती है। साहब की चाँद निकली है। क्लर्क को भ्रम होता है कि उसकी छींक के छींटे साहब की चाँद पर गिर गए होंगे और साहब नाराज हो गया होगा। वह घबड़ाता है। मध्यांतर में वह साहब के पास जाता है और क्षमा माँगता है - साहब, मुझे क्षमा कर दीजिए। मैंने जानबूझकर वैसी हरकत नहीं की। मुझसे गलती हो गई। मुझे जुकाम हो गया है। साहब गुस्से में कहता है - क्या फालतू बकते हो? भागो। अब क्लर्क समझता है कि छींटे जरूर गिरे हैं। साहब काफी नाराज हैं। वह घबड़ाया हुआ बैठा रहता है। जब नाटक खत्म होता है, तब वह फिर साहब के पास जाकर क्षमा माँगता है - साहब, नाराज मत होइए। जानबूझकर मैंने हरकत नहीं की। आप मुझे माफ कर दीजिए। साहब ज्यादा नाराज होकर कहता है - बदतमीज, तुम बार-बार परेशान क्यों करते हो। हट जाओ यहाँ से।
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