ई-पुस्तकें >> परसाई के राजनीतिक व्यंग्य परसाई के राजनीतिक व्यंग्यहरिशंकर परसाई
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राजनीतिक विषयों पर केंद्रित निबंध कभी-कभी तत्कालीन घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए अपने पाठ की माँग करते हैं लेकिन यदि ऐसा कर पाना संभव न हो तो भी परसाई की मर्मभेदी दृष्टि उनका वॉल्तेयरीय चुटीलापन इन्हें पढ़ा ले जाने का खुद में ही पर्याप्त कारण है।
संघर्षशील और भावुक भी। बहुत ऊँचा व्यक्तित्व भी। आदर्शवादी, कल्पनाशील। ऐतिहासिक शक्तियों को समझनेवाले। भविष्य द्रष्टा। उनकी आत्मकथा ने दुनिया में एक तो उनके व्यक्तित्व को स्थापित किया, दूसरे भारत के स्वाधीनता संघर्ष को, भारतीयों की हालत को निहायत कलात्मक, मोहक तरीके से दुनिया में पहुँचाया। नेहरू की आत्मकथा को बहुत श्रेय है दुनिया के लोगों का ध्यान भारत की हालत और उसके संघर्ष की तरफ खींचने का। अत्यंत मोहक गद्य में लिखी गई इस आत्मकथा ने दुनिया के लोगों की सहानुभूति भारत के संघर्ष को दिलाई।
देश में नेहरू की लोकप्रियता का यह हाल था कि स्त्रियाँ उनके गीत गाती थीं - आ गए वीर जवाहरलाल। वे 'युवक हृदय सम्राट माने जाते थे। युवकों को क्रांतिकारी प्रेरणा उनका लेखन और भाषण देते थे। क्यूबा के क्रांतिकारी नेता फिदेल कास्त्रो प्रतिनिधि मंडल लेकर राष्ट्रसंघ गए थे। न्यूयार्क का कोई अच्छा होटल उन्हें ठहराने को तैयार नहीं हुआ। आखिर उन्हें नीग्रो बस्ती में एक घटिया होटल में जगह मिली। फिदेल कास्त्रो ने कहा है - मैं बहुत दुखी था। अपमानित अनुभव कर रहा था। तभी मुझे सबसे पहले मिलने जो विश्वनेता आया, वे जवाहरलाल नेहरू थे। मेरा मनोबल एकदम ऊँचा हो गया। बातें हुईं। फिदेल कास्त्रो ने कहा - मैंने आपकी आत्मकथा पढ़ी है। कास्त्रो ने स्पेनिश अनुवाद पढ़ा होगा। कितना व्यापक प्रसार और प्रभाव था आत्मकथा का। खूबसूरती और अभिजात्य के कारण स्त्रियों के वे रूमानी हीरो (प्रिंस चार्मिंग) थे। यूरोप की खुशहाल औरतें उन्हें देखकर कहती थी - हाऊ चार्मिंग। डीअर ही इज आफ्टर माई हार्ट।
इस ऊँचाई का और इन गुणों से संपन्न अत्यंत निष्ठावान जवाहरलाल नेहरू सिंहासन पर बैठे थे। विभाजन के कारण कुछ सपने टूटे थे। पर फिर भी वे भारत के महान भविष्य के बारे में आशावान थे, उत्साही थे। अणुयुग के अनुसार उनके कल्पनाशील ऐतिहासिक मानस ने दिल्ली और बांडुंग सम्मेलन 'पंचशील' का सिद्धांत पुन: प्रतिपादित करके विश्व को यह बता दिया था कि आगामी युग में भारत विचार नेतृत्व देगा।
जवाहरलाल पर गाँधीजी का सबसे अधिक प्रभाव पड़ा था - नैतिकता। राजनीति में नैतिकता अक्सर गायब रहती है। गाँधीजी ने सिखाया और नेहरू ने सीखा कि हर चीज को नैतिकता से तौलना चाहिए। इसलिए देश में और अंतर्राष्ट्रीय मामलों में वे नैतिकता की बात करते थे। फ्रांसीसी क्रांति में रूसो के प्रभाव से नैतिकता का तत्त्व रहा। लेनिन भी नैतिकता की बात करते थे।
नेहरू पूरे मार्क्सवादी नहीं थे। पर वे मानते थे कि मैंने मार्क्सवाद से बहुत कुछ सीखा। इतिहासदृष्टि पाई, समाज का विश्लेषण सीखा। ऐतिहासिक शक्तियों की पहचान सीखी। मेरा विश्वास वैज्ञानिक समाजवाद में है। यहाँ बता दूँ कि जो सोवियत रूस में समाजवादी असफलता से दुखी हैं या सुखी हैं, वे यह न समझें कि सब कुछ खत्म हो गया। सृष्टि के आरंभ में जब मानव समाज बना तभी से सामाजिक न्याय की इच्छा और उसके लिए प्रयत्न शुरू हुए और सृष्टि के अंत तक रहेंगे। इस नजरिए से मार्क्स के विचार नहीं मरे हैं और न संदर्भहीन हुए हैं। जड़शास्त्रियों ने मार्क्सवाद का सही अर्थ और उपयोग नहीं होने दिया।
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