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परसाई के राजनीतिक व्यंग्य

हरिशंकर परसाई

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :296
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9709
आईएसबीएन :9781613014189

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राजनीतिक विषयों पर केंद्रित निबंध कभी-कभी तत्कालीन घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए अपने पाठ की माँग करते हैं लेकिन यदि ऐसा कर पाना संभव न हो तो भी परसाई की मर्मभेदी दृष्टि उनका वॉल्तेयरीय चुटीलापन इन्हें पढ़ा ले जाने का खुद में ही पर्याप्त कारण है।


क्या तिरुपति में नेहरू ने सिंहासन त्यागा


एक अच्छी अंग्रेजी पत्रिका में कांग्रेस के तिरुपति अधिवेशन पर अच्छे लेख पढ़े। एक लेख का शीर्षक है- 'नेहरू ऐब्डिकेट्स एट तिरुपति' (तिरुपति में नेहरू ने राज सिंहासन छोड़ दिया) नेहरू राजसिंहासन पर कब बैठे थे? और मृत्यु के अठ्ठाइस साल बाद तक कैसे बैठे रहे। तिरुपति के काफी समय पहले कांग्रेस के नीति निर्धारकों में बहस चल रही थी कि आगे नेहरूवादी नीतियों चलेंगी या मनमोहन सिंह वादी। नेहरू लाइन के लोग, सोनिया गाँधी से लगातार कांग्रेस में आने का आग्रह कर रहे थे। अभी भी कर रहे हैं। समझते हैं नेहरू परिवार का एक ही आदमी कांग्रेस का नेता हो तो नेहरू लाइन चमकती रहे। यही लाइन वैचारिक और कार्यक्रयात्मक भी और संगठनात्मक भी।

उत्तर प्रदेश के उत्साही कांग्रेसियों ने तो राजीव की बेटी प्रियंका को नाबालिग होते हुए भी कांग्रेस का सदस्य बना लिया था। हास्यास्पद घटना थी। कांग्रेसमेन जब तब बड़बड़ाने लगते हैं - आ रही हैं। आ रही हैं  (सोनिया)। चार पाँच दिन पहले कमाल हो गया। उस दिन के पत्र में सोनिया का जो चित्र छपा था, उसमें वे लंबा कुरता और पतली मोरी का पाजामा पहने थीं। कांग्रेसमेन ताली बजाकर बोले - अब समझ लो आ ही गईं। वे हमेशा साड़ी पहनती थीं। अभी राजीव की बरसी हुई है। मातम का साल खत्म। और ये देख लो, सोनियाजी का लंबा कुरता और पाजामा। याने सक्रिय राजनीति में प्रवेश।

लगभग पौन सदी तक नेहरू परिवार ने राज किया। पत्र के लेख का शीर्षक है - 'नेहरू ने तिरुपति में राजसिंहासन त्याग दिया।' नेहरू राजसिंहासन पर कब बैठे थे? आजादी के संघर्ष पर कवि रामधारीसिंह 'दिनकर' ने एक लंबी ओजस्वी कविता लिखी थी जिसका पहला पद था -

सदियों की ठंडी बुझी आग सुगबुगा उठी।

माटी सोने का ताज पहन इठलाती है।

दो राह समय के रथ का घर्घर नाद सुनो

सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।

जनता सिंहासन पर किसे बिठाएगी? यह तय ही था कि जवाहरलाल नेहरू को। जन्म से अभिजात्य और संवेदना गरीबों के साथ। उच्चस्तर के बुद्धिजीवी, तार्किक, वैज्ञानिक दृष्टि संपन्न। इतिहास के विद्वान और इतिहास दृष्टि संपन्न।

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