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परसाई के राजनीतिक व्यंग्य

हरिशंकर परसाई

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :296
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9709
आईएसबीएन :9781613014189

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राजनीतिक विषयों पर केंद्रित निबंध कभी-कभी तत्कालीन घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए अपने पाठ की माँग करते हैं लेकिन यदि ऐसा कर पाना संभव न हो तो भी परसाई की मर्मभेदी दृष्टि उनका वॉल्तेयरीय चुटीलापन इन्हें पढ़ा ले जाने का खुद में ही पर्याप्त कारण है।

बड़े-बड़े बाँध से लेकर-लांड्री तक का उद्घाटन बड़े या छोटे मंत्री के कर कमलों से होता है। बड़े उद्योगों, का बड़े पावर हाउस का, बड़ी कलादीर्घा का, उद्योग प्रदर्शनी आदि का उद्घाटन तो ठीक हो। पर गर्मी के महीने कुएँ के उद्घाटन के इंतजार में बीत जाएँ! दक्षिण भारत में भी एक रेडियो स्टेशन तीन महीने से तैयार है। काम शुरू नहीं कर सकता क्योंकि दिल्ली के मंत्री उद्घाटन करने नहीं आ रहे थे। पुल बन गया है। मगर सड़क बंद है। पुल के दोनों तरफ रोक लगी है। लोगों को कच्चे रास्ते से जाना पड़ता है। कोई हर्ज नहीं। अफसर डरते हैं कि पुल खुलवा दिया तो मंत्री कहेंगे - मेरे कर कमल किस काम के? डा. लोहिया ने ऐसे एक तैयार मगर मंत्री का इंतजार करते पुल का अपने साथियों के साथ रुकावट तोड़कर उद्घाटन कर दिया था।

मंत्री, मुख्यमंत्री आदि जब फीता काटने या बटन दबाने आते हैं, तो सारा प्रशासन ठप्प हो जाता है। हर विभाग के हर छोटे-बड़े अफसर क्लर्क को लगता है कि वे मुझे ही देखने आ रहे हैं और मैं नहीं दिखा तो नाराज हो जाएँगे। कितनी कारें, जीपें दौड़ती हैं। कितना पेट्रोल बरबाद होता है - और वही सरकार लोगों से अपील करती है कि पेट्रोल का संकट है, पेट्रोल बचाओ। खुद ऐसा करते हैं, जैसे सऊदी अरेबिया के मंत्री शेख बेकार-बिन-फालतू-अलतबाह हों।

सार्वजनिक चंदे से संस्था बनवाकर उसके भवन का उद्घाटन किसी मंत्री से करवाने में पदाधिकारियों के पवित्र उद्देश्य भी होते हैं। बढ़िया स्वागत के बाद मंत्री से कहेंगे - आजकल धंधा ठंडा है। एक गैस एजेंसी दिला दें तो हमारी हालत सुधर जाए। हम आपकी सेवा को हमेशा तैयार हैं। मंत्री कहते हैं - इन कार्यक्रमों से जनसंपर्क होता है। यह गलत है।

जन तो पास आ ही नहीं सकता। शासन के लोग, पुलिस, जन को मंत्रीजी के पास आने ही नहीं देती। संपर्क होता है अफसरों, पार्टी के नेताओं से और दो नंबरी कारोबार से बड़े बने लोगों से। ऐसे मौके पर परस्पर लाभ के समझौते भी होते हैं।

मुझसे एक विभाग के अधिकारी ने कहा - हमारे कर्मचारियों के लिए जो क्वार्टर बने हैं, उनका उद्घाटन हमने अपने कार्यालय के सबसे बूढ़े चपरासी से करवाया। मुझे यह अच्छा लगा। अधिकारी को वीर चक्र मिलना चाहिए।

जमाना खराब चल रहा है। सरकारी इमारतों की एक बुरी आदत पड़ गई है। उनमें फीता काटने के बाद ही गिर जाने की प्रवृत्ति आ गई है। मेरी मंत्रियों को सलाह है कि वे फीता काटकर भीतर कतई नहीं जाएँ। फीता काटकर फौरन कार में बैठकर रेस्ट हाउस जाकर जान बचाएँ। चुनाव संहिता लागू होने के जरा पहले जो सैकड़ों शिलान्यास योजनाओं के वायदे मंत्रियों ने किए हैं, उन्हें पुरातत्व विभाग को सौंप दिया जाए। वे ऐसे ही रहनेवाले हैं। उन्हें अच्छी हालत में रखा जाए। अशोक के शिलालेखों के बाद ये शिलालेख इतिहास में जाएँगे।

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