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परसाई के राजनीतिक व्यंग्य

हरिशंकर परसाई

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :296
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9709
आईएसबीएन :9781613014189

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राजनीतिक विषयों पर केंद्रित निबंध कभी-कभी तत्कालीन घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए अपने पाठ की माँग करते हैं लेकिन यदि ऐसा कर पाना संभव न हो तो भी परसाई की मर्मभेदी दृष्टि उनका वॉल्तेयरीय चुटीलापन इन्हें पढ़ा ले जाने का खुद में ही पर्याप्त कारण है।


स्वस्थ सामाजिक हलचल और अराजकता


कभी-कभी समाज में विशेष हलचल होती है। खंडन-मंडन होते हैं। अशांति भी होती है। उपद्रव भी होते हैं। ये इस तथ्य कुछ संकेत है कि यह एक जीवित समाज है। इसमें परिवर्तन की कशमकश चल रही है। बेचैनी है। पुराने मूल्य आगत मूल्यों से टकरा रहे हैं। अच्छे परिवर्तन होंगे, नए मूल्य आएँगे, नई जीवन पद्धति आएगी। वरना लगातार शांत रहनेवाला समाज, जिसमें कोई बेचैनी और हलचल नहीं, मृत समाज होता है, जड़ समाज होता है। इस नजरिए से हलचल, अशांति को स्वस्थ माना जाता है।

पर मूल प्रश्न है कि इस हलचल, बेचैनी टकराहट की प्रकृति क्या है और इसके मूल उद्देश्य क्या हैं? क्या ये उद्देश्य समाज में स्वस्थ बदलाहट के हैं? युगों से चली आयी मानव विरोधी परंपराओं को खत्म करने के लिए हैं? राजा राममोहन राय ने सतीप्रथा को बंद करवाने का आंदोलन किया था, तब काफी टकराहट हुई पुराने विचारोंवालो से। प्रदर्शन हुए, राममोहन राय और उनके साथियों का मजाक उड़ाया गया, परिवार बँट गया। पर वाइसराय लार्ड विलियम बैंटिक को कानून द्वारा सतीप्रथा को बंद करना पड़ा। ऋषि दयानंद सरस्वती पुर्नसंस्थानवादी और समाज सुधारक थे। उन्होंने वर्ण व्यवस्था, बाल-विवाह को समाप्त करने के लिए आदोलन किया। विधवा विवाह के पक्ष में आंदोलन किया। पुरातनपंथी शास्त्रियों और प्रतिष्ठित लोगों ने उनका विरोध किया। पर आर्य समाज का आंदोलन आक्रामक था। पश्चिम उत्तरप्रदेश और पंजाब में आर्य समाज ने व्यापक कार्य किया। एक ही बात नकारात्मक थी - दूसरे धर्मों, पंथों का खंडन और उनके प्रति विरोध भाव।

कभी आम जनता में मानसिक हलचल होती है, बेचैनी होती है, कि समाज व्यवस्था में या धर्मव्यवस्था में कुछ खराबियाँ हैं, जिन्हें ठीक होना चाहिए। नेतृत्व बाद में मिलता है। कैथलिक ईसाई ढाँचे में भ्रष्टाचार, पाखंड, शोषण था इससे जनसामान्य बेचैन था और बदलाव चाहता था। इस असंतोष का नेतृत्व करनेवाला भी जो मिला वह भी पादरी था मार्टिन लूथर। कुछ नेता राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक जाति को बोध कराते हैं कि सुधार चाहिए और वे इस तरह होंगे। इसके बाद हलचल पैदा होती है।

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